बिजली सुरक्षा: एक व्यक्तिगत अनुभव और जरूरी टिप्स
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बिजली आज के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन इसके साथ सुरक्षा की सावधानियाँ अपनाना भी उतना ही जरूरी है। पिछले वर्षों में, मैंने बिजली सुरक्षा के कई पहलुओं को सीखा और महसूस किया कि सही सावधानियाँ अपनाने से कितनी महत्वपूर्ण सुरक्षा मिल सकती है। इस ब्लॉग में, मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर बिजली सुरक्षा के कुछ आसान और प्रभावी उपाय साझा कर रहा हूँ।
मेरे अनुभव: एक बडी सीख
कुछ साल पहले, मेरे घर में अचानक एक शॉर्ट सर्किट की घटना हुई। मैंने देखा कि एक पुरानी वायरिंग के कारण करंट अचानक बढ़ गया और उपकरणों ने धुआं छोड़ना शुरू कर दिया। शुक्र है कि मैं समय पर बिजली की सप्लाई बंद करने में सक्षम रहा, लेकिन इस घटना ने मुझे बिजली सुरक्षा के महत्व को अच्छी तरह से समझाया। इसके बाद, मैंने तय किया कि मैं और मेरे परिवार के सदस्य बिजली के उपयोग में सतर्क रहेंगे।
महत्वपूर्ण टिप्स:
- उपकरणों की सही देखभाल करें
उपयोग के बाद उपकरणों को सही तरीके से बंद करें। गीले हाथों से उपकरणों को न छुएं। - वायरिंग और सॉकेट्स की जांच
नियमित रूप से वायरिंग और सॉकेट्स की जांच करवाएं। किसी भी खराबी को नजरअंदाज न करें। - अच्छे क्वालिटी के उपकरण चुनें
हमेशा मान्यता प्राप्त ब्रांड्स के उपकरण खरीदें। घटिया गुणवत्ता के सामान से बचें। - सॉकेट्स का सुरक्षित उपयोग
सॉकेट्स पर अधिक लोड न डालें और बच्चों से दूर रखें। - आपातकालीन स्थिति
किसी भी आपातकालीन स्थिति में तुरंत बिजली की सप्लाई बंद करें और विशेषज्ञ से संपर्क करें।
चित्रों के लिए सुझाव:
- बिजली के उपकरणों का सही इस्तेमाल




बिजली की सुरक्षा के नियमों का पालन करके हम न केवल अपने उपकरणों की उम्र बढ़ा सकते हैं, बल्कि अपने परिवार को संभावित खतरों से भी बचा सकते हैं। मेरा व्यक्तिगत अनुभव हमें यह सिखाता है कि सुरक्षा में ही समझदारी है।
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लीड-एसिड बैटरी का घनत्व मापना: एक आवश्यक प्रक्रिया
परिचय
लीड-एसिड बैटरी सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली बैटरियों में से एक है, जो विभिन्न वाहनों, इनवर्टर्स और उद्योगों में प्रयोग होती है। इसकी देखभाल और सही ढंग से चार्ज स्थिति जानने के लिए, बैटरी के इलेक्ट्रोलाइट्स का घनत्व मापना आवश्यक है। यह घनत्व बैटरी के चार्ज लेवल का सीधा संकेतक होता है।
लीड-एसिड बैटरी के घनत्व मापने की प्रक्रिया
- हाइड्रोमीटर का उपयोग: यह उपकरण आपको बैटरी में उपस्थित इलेक्ट्रोलाइट्स का घनत्व मापने में मदद करता है।
- सही माप: लीड-एसिड बैटरी का सामान्य घनत्व 1.265-1.299 g/cm³ के बीच होना चाहिए।
- सभी सेल्स का परीक्षण: बैटरी के सभी सेल्स का घनत्व मापना चाहिए ताकि किसी असामान्यता का पता चल सके।
महत्व
लीड-एसिड बैटरी के घनत्व मापने से उसकी चार्ज स्थिति और समग्र सेहत का पता चलता है। सही घनत्व से बैटरी अधिक समय तक चलती है और यह प्रक्रिया बैटरी की लाइफ को बढ़ाने में मददगार होती है।
मेरा अनुभव
लीड-एसिड बैटरी के घनत्व मापने के दौरान मैंने सीखा कि नियमित जांच से बैटरी की स्थिति को सही समय पर सुधारना संभव होता है। यह बैटरी के कार्यक्षमता को बढ़ाने का सरल और प्रभावी तरीका है।
निष्कर्ष
लीड-एसिड बैटरी के घनत्व की नियमित जांच से न केवल उसकी परफॉर्मेंस बेहतर होती है, बल्कि उसकी लाइफ भी लंबी होती है। यह एक आसान प्रक्रिया है, जिसे सावधानी से करना चाहिए।

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बायोगैस: एक मजेदार और उपयोगी गैस
बायोगैस क्या है?
बायोगैस एक खास तरह की गैस है जो हमें जैविक कचरे से मिलती है। जैविक कचरा मतलब वे चीजें जो भोजन या पौधों से आती हैं, जैसे केले के छिलके, सब्जियों के टुकड़े, या गाएं का गोबर।
बायोगैस कैसे बनती है?
- कचरा इकट्ठा करना: पहले हम जैविक कचरे को एक बड़े डिब्बे में डालते हैं। इसे बायोगैस प्लांट कहते हैं।
- विघटन: कचरा इस डिब्बे में बैक्टीरिया (सूक्ष्मजीव) द्वारा विघटित होता है, जिससे गैस बनती है।
- गैस संग्रहण: गैस को एक बड़े बैलून या टैंक में इकट्ठा किया जाता है।


बायोगैस के घटक और उनके प्रतिशत
बायोगैस में मुख्यतः निम्नलिखित गैसें होती हैं:
- मीथेन (CH4): 50-75% – यह गैस सबसे अधिक मात्रा में होती है और ऊर्जा देने के लिए जिम्मेदार होती है।
- कार्बन डाइऑक्साइड (CO2): 25-50% – यह गैस मीथेन के साथ मिश्रित होती है, लेकिन इसका ऊर्जा देने में कोई भूमिका नहीं होती।
- हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S): 0-1% – यह गैस थोड़ी मात्रा में होती है और इसका रंग और गंध बहुत खराब होता है।
- अन्य गैसें: जैसे कि वाटर वाष्प, नाइट्रोजन आदि, जो थोड़ी मात्रा में होती हैं।
[इमेज 2: बायोगैस की संरचना]
बायोगैस के फायदे
- ऊर्जा मिलती है: बायोगैस का उपयोग चूल्हा जलाने, हीटर में गर्मी देने, या बिजली बनाने में किया जा सकता है।
- कचरा कम होता है: बायोगैस बनाने से कचरे की मात्रा कम हो जाती है और हमारे आस-पास का वातावरण साफ रहता है।
- पौधों के लिए खाद: बायोगैस बनने के बाद बचे हुए कचरे को खेतों में खाद के रूप में उपयोग किया जा सकता है|
बायोगैस का उपयोग कैसे होता है?
- खाना पकाने में: बायोगैस से चूल्हा जलाया जाता है जिससे खाना पकाया जा सकता है।
- घर को गर्म करने में: बायोगैस से हीटर चलाया जा सकता है, जिससे घर गर्म रहता है।
- बिजली बनाने में: बायोगैस का उपयोग जनरेटर में किया जा सकता है जिससे बिजली बनाई जाती है।

बायोगैस की अन्य गैसों से तुलना-
1 घन मीटर बायोगैस (उष्मामान लगभग 4700 किलो कैलोरी)निम्न ईंधन स्रोतों की बचत कर सकती है –
- 3.5 किलोग्राम लकड़ी
- 0.62 लीटर केरोसीन
- 0.43 किलोग्राम एल. पी. जी. गैस
- 12.3 किलोग्राम गोबर के कपड़े
- 1.5 किलोग्राम कोयला
- 0.5 यूनिट बिजली
उपरोक्त तालिका से यह स्पष्ट हो जाता है कि, बायोगैस का उपयोग कर हम लकड़ी एवं बिजली की बचत कर सकते हैं। लकड़ी की बचत से, वनों को काटने से रोका जा सकता है। इससे वृक्ष हरे – भरे रहेंगे एवं वर्ष में सहायता करेंगे। अच्छी वर्ष से हम सभी प्रसन्न रहेंगे तथा समृद्ध होंगे।
बायोगैस संयंत्र की क्षमता का चुनाव
संयंत्र की क्षमता का चुनाव जानवरों से प्रतिदिन उपलब्ध गोबर की मात्रा एवं परिवार में सदस्यों की संख्या के आधार पर ही करना चाहिए जिससे संयंत्र सुचारू रूप से कार्य करता रहे।
| गोबर की आवश्यकता मात्रा किग्रा. | जानवरों की संख्या | संयंत्र की क्षमता घन मीटर | सदस्यों की संख्या |
| 50 | 4 – 5 | 2 | 5 – 6 |
| 75 | 6 – 8 | 3 | 7 – 9 |
| 100 | 9 – 11 | 4 | 10 – 12 |
| 150 | 12 – 16 | 6 | 13 – 16 |
कहां उपयोग कर सकते हैं?
- ग्रामीण इलाकों में: बायोगैस प्लांट ग्रामीण इलाकों में बहुत उपयोगी होते हैं जहां जैविक कचरा अधिक होता है।
- शहरी इलाकों में: शहरों में भी बायोगैस प्लांट लगाकर कचरे की समस्या हल की जा सकती है।
निष्कर्ष
बायोगैस एक मजेदार और उपयोगी गैस है जो हमारे कचरे से प्राप्त होती है। यह हमें स्वच्छ ऊर्जा देती है और हमारे पर्यावरण की रक्षा करती है। बायोगैस का सही उपयोग करके हम अपनी धरती को साफ-सुथरा रख सकते हैं और ऊर्जा भी प्राप्त कर सकते हैं।

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डम्पी लेवल: आसान मापने वाला यंत्र
डम्पी लेवल एक साधारण यंत्र है, जिसका उपयोग ज़मीन की ऊँचाई मापने के लिए किया जाता है। इसका मुख्य उपयोग सड़कों, पुलों और इमारतों के निर्माण में होता है, जिससे सतह को समतल किया जा सके।
डम्पी लेवल के मुख्य भाग:
- टेलीस्कोप: ज़मीन को देखने और मापने के लिए।
- ट्राइपोड: यंत्र को स्थिर रखने के लिए।
- बबल लेवल: यंत्र को सीधा रखने में मदद करता है।
डम्पी लेवल का काम:
इसे ट्राइपोड पर रखकर बबल लेवल से सीधा किया जाता है। फिर टेलीस्कोप से ज़मीन के बिंदुओं की ऊँचाई मापी जाती है।
मेरा अनुभव:
पहली बार इसका इस्तेमाल करते हुए मुझे इसे सही तरीके से सेट करने में दिक्कत हुई, लेकिन धीरे-धीरे मैंने सीखा कि बबल को ठीक कर सही माप कैसे लेना है। अब, मुझे इसका उपयोग करना आसान और रोचक लगता है। इससे मापने की सटीकता ने मेरे काम को बहुत सरल बना दिया।
निष्कर्ष:
डम्पी लेवल एक सरल और उपयोगी यंत्र है, जो सटीक माप में मदद करता है। थोड़े अभ्यास से इसे कोई भी आसानी से सीख सकता है।

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हाइड्रो मार्कर: एक आसान समझ
परिचय
हाइड्रो मार्कर एक ऐसा उपकरण है जिससे पानी का स्तर मापा जाता है। इसका इस्तेमाल नदियों, तालाबों और झीलों में पानी की ऊंचाई जानने के लिए किया जाता है। यह खासतौर पर तब काम आता है जब हमें पानी के स्तर को सही से मापकर बाढ़ या सूखे से बचाव करना हो।
हाइड्रो मार्कर के हिस्से
- मापने की पट्टी (स्केल): यह एक लंबी पट्टी होती है, जिससे हम पानी का लेवल देख सकते हैं।
- संकेतक (इंडिकेटर): यह पानी की ऊंचाई को सही तरीके से दिखाता है।
- स्थापना प्लेटफार्म: इसे सही जगह पर लगाने के लिए प्लेटफार्म का इस्तेमाल होता है।
हाइड्रो मार्कर क्यों ज़रूरी है?
- जल प्रबंधन: इससे हम पानी के स्तर को समझ सकते हैं और भविष्य की समस्याओं से बच सकते हैं।
- खेती में मदद: किसान पानी के स्तर को मापकर अपने खेतों में सही समय पर सिंचाई कर सकते हैं।
- बाढ़ से बचाव: इससे बाढ़ आने से पहले ही सतर्कता बरती जा सकती है।
निष्कर्ष
हाइड्रो मार्कर पानी मापने का एक आसान और जरूरी उपकरण है। इसका सही इस्तेमाल हमें बाढ़ और सूखे जैसी समस्याओं से बचा सकता है और जल प्रबंधन में भी मदद करता है!

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सोलर पैनल की सफाई: आसान तरीके और टिप्स
सोलर पैनल की सफाई एक महत्वपूर्ण कार्य है, जो उनकी दक्षता और दीर्घकालिक प्रदर्शन को बनाए रखने में मदद करता है। आइए, जानें सोलर पैनल की सफाई के विभिन्न प्रकार और उन्हें कैसे सही तरीके से साफ करें|
सफाई के प्रकार–
- सूखी सफाई
- कब करें? जब पैनल पर धूल, पत्ते, या अन्य सूखी गंदगी हो।
- कैसे करें? एक नरम ब्रश या झाड़ू का उपयोग करके पैनल की सतह को धीरे से साफ करें। सूखी सफाई की विधि से पैनल को कोई नुकसान नहीं होता और यह गंदगी को हटाने में मदद करती है।
- गीली सफाई
- कब करें? जब पैनल पर जमी हुई गंदगी या चिकनाई हो, जैसे कि पक्षियों का मल या धुंध।
- कैसे करें?
- पहले पैनल को पानी से गीला करें ताकि गंदगी ढीली हो जाए।
- फिर, साधारण साबुन और पानी के घोल से एक नरम ब्रश या स्पंज से साफ करें।
- अंत में, पैनल को साफ पानी से धोएं और मुलायम कपड़े से सुखाएं।

- वैक्यूम सफाई
- कब करें? जब पैनल पर ढेर सारी धूल हो और आपको गहरी सफाई की आवश्यकता हो।
- कैसे करें? एक वैक्यूम क्लीनर का उपयोग करके पैनल की सतह को धीरे-धीरे साफ करें। इस विधि से धूल को आसानी से हटाया जा सकता है, लेकिन ध्यान दें कि पैनल को नुकसान न पहुंचे।
- प्रेशर वॉशिंग
- कब करें? जब पैनल पर बहुत गहरी गंदगी हो और अन्य विधियाँ प्रभावी न हों।
- कैसे करें?
- प्रेशर वॉशर का उपयोग करते समय बहुत अधिक दबाव से बचें, क्योंकि इससे पैनल को नुकसान हो सकता है।
- हल्के दबाव पर सेट करें और पैनल को एक समान तरीके से धोएं।
सफाई के टिप्स
- समय: सुबह या शाम के समय सफाई करें, जब सूरज की किरणें बहुत तेज़ न हों।
- सावधानियाँ: कभी भी हार्ड ब्रश या एब्रेसिव सामग्री का उपयोग न करें। अत्यधिक गर्मी में सफाई से बचें।
- सुरक्षा: अगर पैनल की सफाई के दौरान ऊँचाई पर चढ़ना पड़ता है, तो सुरक्षा उपकरण का उपयोग करें और सावधानीपूर्वक काम करें।
निष्कर्ष
सोलर पैनल की नियमित सफाई से उनकी दक्षता बनी रहती है और वे लंबे समय तक अच्छे काम करते हैं। विभिन्न सफाई विधियाँ आपको सही समय और तरीके से पैनल को साफ करने में मदद करेंगी। यदि आप इन टिप्स का पालन करेंगे, तो आपके सोलर पैनल हमेशा उच्च प्रदर्शन में रहेंगे।
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एक्सटेंशन बोर्ड कैसे बनाएं – आवश्यक उपकरण, प्रक्रिया, और मेरा अनुभव
परिचय
एक्सटेंशन बोर्ड एक बहुत ही उपयोगी उपकरण है, जो हमें एक ही स्थान पर कई उपकरणों को कनेक्ट करने की सुविधा देता है। अक्सर बाजार में कई प्रकार के एक्सटेंशन बोर्ड मिल जाते हैं, लेकिन अगर आप खुद इसे बनाना चाहते हैं, तो यह जानना जरूरी है कि कौन-कौन से उपकरण और सामग्री की आवश्यकता होती है और इसे सुरक्षित रूप से कैसे तैयार किया जाए। इस ब्लॉग में, हम एक्सटेंशन बोर्ड बनाने के लिए आवश्यक उपकरण, इसे तैयार करने की प्रक्रिया और मेरे खुद के अनुभव के बारे में चर्चा करेंगे।
एक्सटेंशन बोर्ड बनाने के लिए आवश्यक उपकरण और सामग्री
- प्लास्टिक बॉक्स: एक्सटेंशन बोर्ड के लिए एक मजबूत और गैर-धातु का प्लास्टिक बॉक्स आवश्यक होता है, जिसमें सभी सॉकेट्स और वायरिंग फिट हो सकें।
- सॉकेट्स : पावर सॉकेट्स या प्लग पॉइंट्स, जिनमें आप उपकरणों को कनेक्ट कर सकते हैं। आमतौर पर, 3-पिन और 2-पिन सॉकेट्स का उपयोग किया जाता है।
- स्विच: एक्सटेंशन बोर्ड पर स्विच का होना जरूरी है, ताकि आप आसानी से बिजली की आपूर्ति को नियंत्रित कर सकें।
- मल्टीकोर केबल: एक अच्छी गुणवत्ता वाली मल्टीकोर केबल, जो सभी सॉकेट्स और स्विच को बिजली की आपूर्ति से जोड़ सके।
- 3-पिन प्लग: बोर्ड को मुख्य बिजली आपूर्ति से जोड़ने के लिए एक 3-पिन प्लग की आवश्यकता होती है।
- फ्यूज : फ्यूज का उपयोग एक्सटेंशन बोर्ड को बिजली के झटकों से बचाने के लिए किया जाता है।
- स्क्रू ड्राइवर सेट और प्लायर: इंस्टॉलेशन और वायरिंग के लिए विभिन्न प्रकार के स्क्रू ड्राइवर्स और प्लायर की आवश्यकता होती है।
- इलेक्ट्रिकल टेप: वायरिंग को सुरक्षित रखने और किसी भी खुले तार को ढकने के लिए इलेक्ट्रिकल टेप का उपयोग किया जाता है।
एक्सटेंशन बोर्ड बनाने की प्रक्रिया
- बॉक्स तैयार करना: सबसे पहले, प्लास्टिक बॉक्स को तैयार करें। बॉक्स के अंदर स्विच और सॉकेट्स के लिए छेद करें। सुनिश्चित करें कि छेद सही आकार और जगह पर हों ताकि उपकरण ठीक से फिट हो सकें।
- वायरिंग: मल्टीकोर केबल का उपयोग करते हुए सॉकेट्स और स्विच को आपस में जोड़ें। ध्यान रखें कि प्रत्येक सॉकेट को सही क्रम में कनेक्ट किया गया हो।
- लाइव (फेज) वायर को सॉकेट के लाइव टर्मिनल से जोड़ें।
- न्यूट्रल वायर को सॉकेट के न्यूट्रल टर्मिनल से कनेक्ट करें।
- अर्थ वायर को सॉकेट के अर्थिंग टर्मिनल से जोड़ें।
- स्विच कनेक्शन: स्विच को ऐसे कनेक्ट करें कि वह सभी सॉकेट्स को नियंत्रित कर सके। यह सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि स्विच के माध्यम से आप एक्सटेंशन बोर्ड को पूरी तरह से बंद कर सकते हैं।
- फ्यूज इंस्टॉल करना: यदि आप फ्यूज का उपयोग कर रहे हैं, तो इसे प्लास्टिक बॉक्स में स्विच और सॉकेट के पास इंस्टॉल करें। यह अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करेगा।
- फाइनल असेम्बली: जब सभी वायरिंग हो जाए और सभी उपकरण ठीक से कनेक्ट हो जाएं, तो बॉक्स को बंद कर दें और सुनिश्चित करें कि सभी स्क्रू टाइट हों। सभी कनेक्शनों की डबल चेकिंग करें ताकि कहीं कोई ढीला कनेक्शन न हो।
- टेस्टिंग: एक्सटेंशन बोर्ड को मुख्य बिजली आपूर्ति में प्लग करें और स्विच ऑन करें। सभी सॉकेट्स को जांचें कि वे सही ढंग से काम कर रहे हैं या नहीं। अगर सभी उपकरण सही तरीके से काम कर रहे हैं, तो आपका एक्सटेंशन बोर्ड तैयार है!
मेरा अनुभव
जब मैंने पहली बार एक्सटेंशन बोर्ड बनाने का प्रयास किया, तो यह एक बहुत ही शिक्षाप्रद अनुभव था। मुझे समझ आया कि हर छोटे-छोटे कनेक्शन का महत्व कितना होता है। मैंने सीखा कि वायरिंग के दौरान सुरक्षा का ध्यान रखना सबसे जरूरी है। एक बार, मैंने जल्दीबाजी में एक कनेक्शन को ढीला छोड़ दिया था, जिससे बोर्ड ने सही से काम नहीं किया। इससे मैंने सीखा कि धैर्य के साथ और पूरी तरह से ध्यान देकर काम करना जरूरी है।
मेरा मानना है कि यदि आप थोड़ी सावधानी और सही जानकारी के साथ काम करें, तो आप एक सुरक्षित और कुशल एक्सटेंशन बोर्ड बना सकते हैं।






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प्लेन टेबल विधि: आसान और दिलचस्प तरीका
परिचय
प्लेन टेबल विधि एक प्राचीन सर्वेक्षण तकनीक है, जिसका उपयोग ज़मीन के नक्शे बनाने के लिए किया जाता है। इसमें एक सपाट बोर्ड (प्लेन टेबल) और कुछ साधारण उपकरणों की मदद से ज़मीन के माप लिए जाते हैं। यह विधि आज भी सटीक और सरल मानी जाती है, खासकर तब जब हमें तुरंत नक्शा बनाना हो।
प्लेन टेबल विधि के चरण
- टेबल को सीधा करें: सबसे पहले, प्लेन टेबल को तिपाई (tripod) पर लगाकर यह सुनिश्चित किया जाता है कि यह बिल्कुल सीधा हो।
- दिशा मापें: एक यंत्र जिसे अलिडेड (alidade) कहते हैं, उसकी मदद से नक्शे की दिशा निर्धारित की जाती है। यह प्रक्रिया बिल्कुल वैसी है जैसे हम कम्पास से दिशा मापते हैं।
- बिंदु अंकित करें: ज़मीन पर महत्वपूर्ण बिंदु जैसे कोने या किनारे कागज पर चिह्नित किए जाते हैं।
- रेखाएं खींचें: बिंदुओं के बीच सीधी रेखाएं खींची जाती हैं, जिससे ज़मीन का सटीक आकार पता चलता है।
इस विधि का महत्व
प्लेन टेबल विधि सरल होने के साथ-साथ बहुत उपयोगी भी है। इसे छोटे-बड़े सर्वेक्षणों में आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है, चाहे वह स्कूल के खेल मैदान का नक्शा हो या किसी बड़ी इमारत की साइट प्लानिंग। इससे छात्र आसानी से समझ सकते हैं कि कैसे ज़मीन के माप और नक्शे बनाए जाते हैं।
मेरा अनुभव
जब मैंने पहली बार इस विधि का उपयोग किया, तो मुझे यह बहुत रोमांचक और सीखने योग्य लगा। सही माप और बिंदु मिलाने के बाद, जैसे ही नक्शा कागज पर उभरता है, तो ऐसा लगता है जैसे कोई जादू हो गया हो। यह विधि बेहद दिलचस्प है।
निष्कर्ष
प्लेन टेबल विधि सरल, सटीक और सीखने में मजेदार है। इसे इस्तेमाल करके छात्र आसानी से नक्शे बनाना सीख सकते हैं। यह न केवल उन्हें सर्वेक्षण के बारे में समझाएगा, बल्कि उनकी दिशा और माप की समझ भी बेहतर करेगा।

Additional photos during session –
















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फैन दुरुस्ती
खराब फैन को फिर से चालू करना, उसका इलेक्ट्रिकल कनेक्शन और मैकेनिकल हिस्सों को पहचानना और यह समझना कि दिक्कत कहां है और उसे कैसे ठीक किया जाए।
सामग्री:
- खराब फैन
- स्क्रू ड्राइवर
- मल्टीमीटर
- वायर स्ट्रिपर
- सेफ्टी चश्मा और ग्लव्स
- नया कैपेसिटर या बियरिंग (जरूरत पड़ने पर)
काम करने की प्रक्रिया (जैसे मैंने किया):
- सबसे पहले फैन का कवर खोला और देखा कि कोई वायर जली हुई तो नहीं।
- मल्टीमीटर से वोल्टेज और कनेक्शन चेक किया – स्विच, मोटर और कैपेसिटर को एक-एक करके परखा।
- जहाँ कैपेसिटर या बियरिंग खराब थे, उन्हें बदला। कहीं वायरिंग ढीली थी तो उसे फिर से जोड़ा।
- जब सब ठीक कर लिया, तब फैन को प्लग में लगाया और जैसे ही वो घूमने लगा – एक सच्चे जुगाड़ वाले इंजीनियर का आत्मविश्वास जग उठा!
निष्कर्ष:
इस प्रैक्टिकल से मैंने ये समझा कि फैन की मरम्मत करना सिर्फ एक टेक्निकल काम नहीं है — ये ध्यान, समझ और धैर्य का काम है।
अब जब भी कोई फैन बंद दिखता है, तो मेरा दिमाग खुद-ब-खुद सोचने लगता है: कैपेसिटर है या वायरिंग? स्विच तो सही है ना?
ये अनुभव मेरे लिए सिर्फ एक सीख नहीं, एक आत्मविश्वास की शुरुआत है।
अर्थिंग
इलेक्ट्रिक कामों में एक चीज़ सबसे ज़्यादा जरूरी होती है — सुरक्षा!
और सुरक्षा की सबसे मजबूत नींव होती है — अर्थिंग।
हमें यही करना था — पॉलिहाउस के पीछे लगे सोलर पैनल की सही अर्थिंग, जो पहले ढंग से नहीं की गई थी।
अर्थिंग की सही प्रक्रिया को सीखना और यह समझना कि इससे इलेक्ट्रिक सिस्टम और इंसान दोनों को सुरक्षा कैसे मिलती है।
सामग्री की लिस्ट:
- तांबे की प्लेट (लगभग 0.5m × 0.5m)
- तांबे की तार (2-3 मीटर लंबी)
- फावड़ा, कुदाल
- ड्रिल मशीन
- मल्टीमीटर
- पानी की बाल्टी
- अर्थिंग पावडर, कोयला और नमक (आवश्यकतानुसार)
काम की प्रक्रिया
1. जगह का चुनाव:
सर ने कहा कि सोलर पैनल की अर्थिंग सही नहीं थी, इसलिए हमने पॉलिहाउस के पीछे की जगह को चुना। ज़मीन थोड़ी सख्त थी, लेकिन टीम में जोश था।
2. खड्डा खोदना:
कुदाल और फावड़ा लेकर हमने 2 से 3 फीट गहरा गड्ढा खोदा।
3. तांबे की प्लेट और वायर लगाना:
प्लेट के एक कोने में वायर को कसकर जोड़ा और फिर वायर को पैनल के अर्थिंग बिंदु से जोड़ दिया। वायरिंग मज़बूत होनी ज़रूरी थी क्योंकि यही तो करंट को ज़मीन तक भेजेगी।
4. भराव और लेयरिंग:
अब आया सबसे खास हिस्सा — गड्ढे को भरना।
सबसे पहले कोयला, फिर नमक, फिर अर्थिंग पावडर और आखिर में मिट्टी।
सर ने बताया – कोयला बारिश में नमी सोखता है और नमक गर्मियों में नमी बनाए रखता है।
5. फाइनल चेकिंग:
अंत में मल्टीमीटर निकाला और अर्थिंग की कनेक्टिविटी चेक की। जैसे ही रीडिंग अच्छी आई, चेहरे पर मुस्कान आ गई – काम सफल हुआ!





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मोटर रिवाइंडिंग
- मोटर रिवाइंडिंग की तकनीकी प्रक्रिया को समझना।
- व्यावहारिक ज्ञान और स्किल डेवलप करना – खोलना, चेक करना, और फिर से जोड़ना।
- मोटर की खराबी को पहचानकर उसका समाधान ढूंढना।
सामग्री:
- इलेक्ट्रिकल मोटर
- वाइंडिंग वायर
- मल्टीमीटर
- इन्सुलेशन पेपर
- वाइंडिंग मशीन या जिग
- स्क्रूड्रायवर, प्लास, स्क्रू गेज
- लीड एसिड, स्टूल
- कटर और वर्किंग डायग्राम
कैसे किया –
1. मोटर चेकिंग की शुरुआत:
हम गांव के एक अनुभवी रिवाइंडिंग वर्कशॉप में पहुँचे।
सबसे पहले मल्टीमीटर से वायरिंग को चेक किया गया। स्टार्टिंग और रनिंग वाइंडिंग को टटोला गया।
पता चला – फेज वायर में करंट नहीं आ रहा था। यानी वाइंडिंग जल चुकी थी।
2. खोलना और पुरानी वाइंडिंग निकालना:
स्क्रू बहुत टाइट थे, इसलिए पहले उन्हें साफ कर ग्रीस लगाया और फिर खोला।
मोटर के अंदर 24 स्लॉट और 6 कोइल वेव्स थीं।
स्टार्टिंग वाइंडिंग को कट करके, प्लास की मदद से ध्यान से निकाला गया। यह थोड़ा मुश्किल था, लेकिन शॉप वाले दादा ने आसान तरीका बताया।
3. वाइंडिंग की गिनती और रिकॉर्डिंग:
हर कॉइल में कितनी तारें थीं, उसका वजन और संख्या गिनकर नोट किया।
जैसे –
- पहली कॉइल में 28 तारें
- दूसरी में 24
- तीसरी में 12
- चौथी में 6 तारें
- फिर सबका कुल वजन निकाला – करीब 1.5 किलो वायर निकली।
- टिप: जितनी वायर निकले उतनी ही डाली जाए — न कम, न ज़्यादा। नहीं तो शॉर्ट सर्किट का खतरा!
4. नई वाइंडिंग करना:
मशीन में नई वायर डालकर वाइंडिंग की गई।
हर स्लॉट में पेपर इंसुलेशन डाला गया ताकि शॉर्ट सर्किट न हो।
वाइंडिंग के बाद बांस की पतली चिप्स काटकर कॉइल को लॉक किया गया।
5. लीड एसिड और फाइनल असेंबली:
फिर उस पर लीड एसिड डाला जिससे वाइंडिंग टिकाऊ बनती है।
मोटर को वापस असेंबल किया गया, कनेक्शन जोड़े और मल्टीमीटर से चेक किया — और हाँ, मोटर चालू हो गई!




@11
कृत्रिम श्वसन (Artificial Respiration):
- आपातकालीन स्थिति में शेफियर पद्धति से कृत्रिम श्वसन देना सीखना।
- सिल्वेस्टर पद्धति से भी श्वसन प्रक्रिया बहाल करना सीखना।
- CPR जैसा प्राथमिक ज्ञान विकसित करना, जिससे किसी की जान बचाई जा सके।
सामग्री:
- एक चटाई
- स्वयंसेवक (जिन्हें रोगी मानकर अभ्यास किया गया)
- धैर्य, संयम और मानवीय भावनाएं
प्रक्रिया
शेफियर पद्धति – पेट के बल लिटाकर श्वास देना
- सबसे पहले पीड़ित को चटाई पर पेट के बल (उल्टा) लिटाया।
- एक हाथ उसके माथे के नीचे और दूसरा हाथ आगे की ओर फैलाया ताकि गर्दन एक ओर मुड़ जाए और श्वसन मार्ग खुला रहे।
- हम पीड़ित की कमर के पास बैठे और अपने दोनों हाथ उसकी पीठ पर रखकर धीरे-धीरे नीचे की ओर दबाया, जिससे छाती का दबाव बढ़े और हवा बाहर निकले।
- फिर दबाव हटाकर शरीर को ढीला छोड़ दिया ताकि अपने आप हवा फेफड़ों में जाए।
- यह प्रक्रिया हर 5 सेकंड में एक बार की गई — यानी एक मिनट में करीब 12 बार।
- इसे तब तक दोहराया गया जब तक व्यक्ति की सांस वापस न आ जाए।
सिल्वेस्टर पद्धति – पीठ के बल लिटाकर हाथों से सांस दिलाना
- इस बार पीड़ित को पीठ के बल लिटाया गया।
- उसके कंधों के नीचे एक छोटा तकिया या मुड़ा हुआ कपड़ा रखा गया जिससे उसकी छाती ऊपर हो जाए।
- हम सिर की दिशा में बैठ गए और उसके दोनों हाथ पकड़े।
- हाथों को धीरे-धीरे ऊपर की ओर फैलाया — ऐसा करने से छाती फैलती है और हवा अंदर जाती है।
- फिर हाथों को नीचे लाकर उसकी छाती पर क्रॉस करके हल्का दबाव डाला जिससे हवा बाहर निकले।
- ये प्रक्रिया भी हर 5 सेकंड में की जाती है और लगातार तब तक जारी रखी जाती है जब तक मरीज में सांस वापस न आ जाए।
निष्कर्ष:
- शेफियर पद्धति से तुरंत कृत्रिम श्वसन देकर किसी बेहोश व्यक्ति की जान बचाई जा सकती है।
- सिल्वेस्टर पद्धति विशेष रूप से उपयोगी है जब व्यक्ति का हृदय बंद हो गया हो या श्वास पूरी तरह रुक गई हो।
- हमने सीखा कि शारीरिक ताक़त से ज़्यादा ज़रूरी है समझदारी, तकनीक और आत्मविश्वास।


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वर्षा मापन (Rainfall Measurement):
उद्देश्य:
- वर्षा मापक यंत्र (Rain Gauge) बनाकर उसका उपयोग करना।
- बारिश की मात्रा को मापना और उसका प्रतिदिन अवलोकन करना।
- वैज्ञानिक तरीके से स्थानीय वर्षा का रिकॉर्ड तैयार करना।
आवश्यक सामग्री:
- काँच या प्लास्टिक की बोतल (कम-से-कम 25 सेमी ऊँचाई)
- वाटरप्रूफ मार्कर / स्केल पट्टी
- प्लास्टिक या स्टील की 12 इंच की गाळणी (छन्नी)
- कैंची, टेप, पानी
प्रक्रिया (Steps):
- सबसे पहले एक खाली प्लास्टिक बॉटल ली। उसके ऊपरी हिस्से को गोलाई में काटा और फिर उसे उल्टा करके नीचे वाले हिस्से में फिट किया, ताकि बूँदें आसानी से अंदर जाएँ।
- बोतल की चौड़ाई निचले हिस्से में कम रखी जिससे पानी इकट्ठा हो सके और स्केल ठीक से काम करे। बोतल के बाहर वाटरप्रूफ मार्कर से 10 मिमी का स्केल चिपकाया और एक बार पानी भरकर माप की पुष्टि की।
- फिर हम सभी Vigyan Ashram के सरकारी वर्षा मापक यंत्र देखने गए। वहाँ सर ने समझाया कि कैसे प्रोफेशनल स्तर पर वर्षा मापी जाती है।
- वहाँ दो प्रकार के मापन हो रहे थे:
- पहला: हमारा खुद का तैयार किया गया Rain Gauge
- दूसरा: सरकारी सेंसर आधारित Rain Gauge, जो डिजिटल डेटा देता है।
- उन्होंने बताया कि Dry and Wet Bulb readings के आधार पर भी नमी (humidity) और वर्षा का अनुमान लगाया जाता है।

प्रोजेक्ट रिपोर्ट
“विज्ञान आश्रम की तीन फेज विद्युत प्रणाली का निरीक्षण, मापन और सुधार कार्य”
उद्देश्य (Objective):
इस प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य विज्ञान आश्रम में स्थापित तीन फेज विद्युत आपूर्ति प्रणाली की गहराई से जांच करना था। इसमें हमें निम्नलिखित कार्य करने थे:
- वर्कशॉप सेक्शन से तीन फेज की वायरिंग कहाँ-कहाँ फैली है, यह पता लगाना।
- पूरे कनेक्शन को एक ब्लॉक डायग्राम के रूप में बनाना।
- क्लॅम्प मीटर और मल्टीमीटर की सहायता से हर फेज पर आने वाला करंट मापना।
- जहां गड़बड़ी थी, वहाँ वायरिंग को ठीक करना, टैगिंग करना और व्यवस्थित करना।
- MCB और सर्विस वायर की स्थिति को समझना, बदलना और सुरक्षित बनाना।
- पूरी प्रणाली की सुरक्षा और दक्षता बढ़ाने के उपाय सीखना।
उपयोग की गई सामग्री (Materials Used):
| क्र.सं. | उपकरण / सामग्री |
|---|---|
| 1 | क्लॅम्प मीटर (Clamp Meter) |
| 2 | मल्टीमीटर (Multimeter) |
| 3 | स्क्रू ड्रायव्हर |
| 4 | वायर टाय, इन्सुलेशन टेप |
| 5 | प्लायर, चाकू |
| 6 | पेपर, पेन, पेन्सिल |
| 7 | सेफ्टी ग्लव्स, गॉगल्स |
कार्य की प्रक्रिया (Working Procedure):
चरण 1: विद्युत आपूर्ति बंद कर निरीक्षण
- सबसे पहले तीन फेज मेन सप्लाय को बंद किया गया।
- इसके बाद तीनों फेज की वायरिंग का निरीक्षण किया गया कि कौन-सी वायर कहाँ से आकर कहाँ जा रही है।
- साथ ही, अर्थिंग कनेक्शन भी चेक किए गए।
चरण 2: वायरिंग का विश्लेषण
- फैब लैब, सॉयल लैब और वर्कशॉप की लाइनें ट्रेस की गईं।
- देखा गया कि वर्कशॉप में जो 32A का MCB लगा है, उससे तीन फेज बाहर जा रही हैं – जिनमें वेल्डिंग मशीन और अन्य उपकरण जुड़े हैं।
चरण 3: वायरिंग सुधार और टैगिंग
- कई तार एक-दूसरे में उलझे हुए थे, जिससे समझ पाना मुश्किल था।
- अनावश्यक नेटवर्क तारों को हटाया गया और सभी मुख्य तारों को टैग किया गया, ताकि पहचान आसान हो।
चरण 4: ब्लॉक डायग्राम बनाना
- हर कनेक्शन की ड्रॉइंग बनाई गई और रंगों द्वारा अलग-अलग फेज दर्शाए गए।
- एक स्पष्ट ब्लॉक डायग्राम तैयार किया गया जिससे वायरिंग की दिशा और कनेक्शन साफ दिखें।
चरण 5: करंट मापन
- क्लॅम्प मीटर द्वारा हर फेज पर करंट रीडिंग ली गई – मशीनें चालू और बंद दोनों स्थिति में।
- यह पता चला कि कुछ फेजों पर लोड असमान रूप से है।
चरण 6: MCB और सर्विस वायर कार्य
- कुछ स्थानों पर MCB को बदला गया जैसे कि होस्टल बाथरूम में।
- सोलर प्रोजेक्ट के पास नई वायरिंग की गई।
- मल्टीमीटर से वोल्टेज मापा गया कि MCB बदलने के बाद सप्लाय बराबर मिल रही है या नहीं।
📏 रीडिंग (Current Readings):
मेन वायरिंग (तीन फेज):
- 🔴 R – 10.8 A
- 🟡 Y – 17.4 A
- 🔵 B – 10.3 A
जब फॅन चालू थे:
| फेज | R | Y | B |
|---|---|---|---|
| R | 0.05 | 0.01 | 0.01 |
| Y | 0.05 | 0.04 | 0.02 |
| B | 4.68 | 4.89 | 4.00 |
जब वेल्डिंग, ड्रिल, कटर मशीनें चालू थीं:
पहली बार:
| फेज | R | Y | B |
|---|---|---|---|
| R | 7.66 | 10.79 | 0.16 |
| Y | 0.03 | 14.00 | 0.03 |
| B | 0.04 | 0.04 | 9.30 |
दूसरी बार:
- B फेज = अधिकतम 22.00 A
- Y फेज = अधिकतम 24.00 A
- न्यूनतम करंट = 14.00 A


🔍 निष्कर्ष (Conclusion):
- इस प्रोजेक्ट से हमें यह जानने को मिला कि वर्कशॉप में तीन फेज वायरिंग कैसे फैली है।
- MCB और सर्विस वायर का जोड़, सुरक्षा की दृष्टि से बहुत जरूरी है।
- सही टैगिंग और ड्रॉइंग से वायरिंग को समझना बहुत आसान हो जाता है।
- हमने यह भी सीखा कि अर्थिंग और ओवरलोड से सुरक्षा के उपाय क्या होते हैं।





अनुभव (Learnings):
- हमें बिजली वायरिंग की व्यावहारिक जानकारी मिली और इससे आत्मविश्वास बढ़ा।
- ब्लॉक डायग्राम बनाना, वायरिंग की दिशा समझना, टैग करना और सुधार करना सीखा।
- MCB कैसे काम करता है, कौन-सा वायर किस लोड पर जाता है, यह जानकारी मिली।
- मल्टीमीटर और क्लॅम्प मीटर का सही उपयोग करना सीखा।
- टीमवर्क और सेफ्टी का महत्व समझ आया।
साथी छात्रों के नाम (Team Members):
- रवींद्रनाथ चैडविक
- उमेश इंपाळ
- आयुष भरणे
- सौरभ कोकरे