गोठयातील नोंदीनचा अभ्यास करणे
उदेश :- गोठयातील नोंदी ठेवण्याचे शिकणे .
बोयलर कोंबडीचा नोंदी ठेवण्याचा चार्ट
DATE | NO OF BIRDS | फीड given | फीड consumption | SINGLE BIRDS WEIGHT | ALL BIRDS WEIGHT | FCR | COST PER BIRD | MEDICINE |
2|2|23 | 194 | 13.8 kg | 13.8 kg | ब्रोटोण / विटामीन c | ||||
3|2|23 | 194 | 16 kg | 16 kg | 743.7 gm | 144.142 kg | 1.04 | ब्रोटोण / विटामीन c | |
4/2/23 | 92 | 9kg | 9kg | ब्रोटोण / विटामीन c | ||||
5/2/23 | 92 | 8.5kg | 8.5kg | ब्रोटोण / विटामीन c | ||||
6/2/23 | 92 | 9 kg | 9 kg | ब्रोटोण / विटामीन c | ||||
7/2/23 | 92 | 9.5kg | 9.5kg | ब्रोटोण / विटामीन c | ||||
8/2/23 | 92 | 12.4kg | 12.4kg | ब्रोटोण / विटामीन c | ||||
9/2/23 | 91 | 9.5kg | 9.5kg | ब्रोटोण / विटामीन c | ||||
10/2/23 | 91 | 11 kg | 11 kg | 1.100 केजी | 100.100 केजी | 1.54 | 125 रु | ब्रोटोण / विटामीन c |
11/2/23 | 91 | 10 kg | 10 kg | ब्रोटोण / विटामीन c | ||||
12/2/23 | 88 | 10 kg | 10 kg | ब्रोटोण / विटामीन c | ||||
13/2/23 | 88 | 11 kg | 11 kg | ब्रोटोण / विटामीन c | ||||
14/2/23 | 88 | 10 kg | 10 kg | ब्रोटोण / विटामीन c | ||||
15/2/23 | 88 | 11kg | 11kg | ब्रोटोण / विटामीन c |
शेळी नोंदी चार्ट
दिनांक | कडवळ | मका मुरघास | हरभरा काड | खुराक | वजन वाढ |
2/2/23 | 11.5 kg | 2.7 kg | 500 gm | |
3/2/23 | 11.5 kg | 2.7 kg | 500 gm | |
4/2/23 | 11.5 kg | 2.7 kg | 500 gm | |
5/2/23 | 11.5 kg | 2.7 kg | 500 gm | |
6/2/23 | 11.5 kg | 2.7 kg | 500 gm | |
7/2/23 | 11.5 kg | 2.7 kg | 500 gm | |
8/2/23 | 11.5 kg | 2.7 kg | 500 gm | |
9/2/23 | 11.5 kg | 2.7 kg | 500 gm | |
10/2/23 | 11.5 kg | 2.7 kg | 500 gm | |
11/2/23 | 11.5 kg | 2.7 kg | 500 gm | |
12/2/23 | 11.5 kg | 2.7 kg | 500 gm | |
13/2/23 | 11.5 kg | 2.7 kg | 500 gm | |
14/2/23 | 11.5 kg | 2.7 kg | 500 gm | |
15/2/23 | 11.5 kg | 2.7 kg | 500 gm |
दिनांक | मुरघास | कडवळ | सुखाचार | गोळी पेंड | भुसा | दूध |
21/2/23 | 26 kg | ——— | 6 kg | 3 kg | 2 kg | 8+8.2 ली |
22/2/23 | 26 kg | ——— | 6 kg | 3 kg | 2 kg | 8+8.7 ली |
23/2/23 | 26 kg | ——— | 6 kg | 3 kg | 2 kg | 10.9+8.7 ली |
24/2/23 | 26 kg | ———- | 6 kg | 3 kg | 2 kg | 9.3+8.7 ली |
25/2/23 | 26 kg | ———- | 6 kg | 3 kg | 2 kg | 8.3+8.7 ली |
26/2/23 | 26kg | ——— | 6kg | 3kg | 2kg | 9+7.9 ली |
27/2/23 | 26kg | ——— | 6kg | 3kg | 2kg | 8+8.5 ली |
28/2/23 | 26kg | ———- | 6kg | 3kg | 2kg | 8.2+9 ली |
1/3/23 | 26kg/ 4 kg मका | ———- | 6kg | 3kg | 2kg | 9.8+9.6 ली |
2/3/23 | 30kg | ——— | 6kg | 3kg | 2kg | 9+9 ली |
3/3/23 | 26kg | ———- | 6kg | 3kg | 4kg | 8.3 + 8.5 ली |
4/3/23 | 26kg | ——— | 6kg | 3kg | 4kg | 8.9+9.6 ली |
5/3/23 | 26kg | ———- | 6kg | 3kg | 4kg | 9.3+9.1 ली |
6/3/23 | ———- | 6kg | 3kg | 4kg |
सोनम गाय
दिनांक | मूरघास | कडवळ | सुखाचारा | गोलीपेंड | भुसा | दूध |
21/2/23 | 26 kg | ————- | 6 kg | 3 kg | 2 kg | 8.5+7 ली |
22/2/23 | 26 kg | ————- | 6 kg | 3 kg | 2 kg | 7.8 +8.9 ली |
23/2/23 | 26 kg | ————- | 6 kg | 3 kg | 2 kg | 8.5+ 7.4 ली |
24/2/23 | 26 kg | ————- | 6 kg | 3 kg | 2 kg | 7+7.5 ली |
25/2/23 | 26 kg | ————- | 6 kg | 3 kg | 2 kg | 7.2+7.2 ली |
26/२ /23 | 26 kg | ————- | 6 kg | 3 kg | 2 kg | 8+6.8 ली |
27/२ /23 | 26 kg | ———– | 6 kg | 3 kg | 2 kg | 7.5 +7 ली |
28/२ /23 | 26 kg | ———– | 6 kg | 3 kg | 2 kg | 8 +7.2 ली |
1 /3/23 | 26 kg / 4 kg मका | ———– | 6 kg | 3 kg | 2 kg | 8 +6.4 ली |
2/3/23 | 30 kg | ———— | 6 kg | 3 kg | 4 kg | 7 +7 ली |
3/3 /23 | 26 kg | ———— | 6 kg | 3 kg | 4 kg | 8.5 + 7 ली |
4/3/23 | 26 kg | ———— | 6 kg | 3 kg | 4 kg | 7.5 + 7.5 ली |
5/3/23 | 26 kg | ———– | 6 kg | 3 kg | 4 kg | 8 + 7.1 ली |
6/3/23 | ———– |
मूरघास तयार करणे .
उदेश :- मूरघास तयार करण्यास शिकणे .
मूरघासा चे फायदे व तोटे समजून घेणे .
साहित्य :- मका , Rumiferm पावडर , पिशवी , सेलो टेप,
साधने :- टप , बादल्या , कुटी मशीन ,वीळे ,ट्रकटर .
कृती :- .
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अट :- कापण्याची योग्य वेळ व दाना दुधावर आल्यावर किंवा कवळा असल्यावर कापणे.
1 मुरघास हात सहा ते दहा महिन्यापर्यंत टिकतो.
2 एक टन कुटीला 100 ग्रॅम रूमीफेरम पावडर लागते.
3 मुरघास मध्ये साठ ते सत्तर टक्के पाणी असते.
प्रश्न :-
1 मुरघास बनवण्याची पद्धत किती व कोणत्या :- मुरघास बनवण्याची पद्धती तीन.
1 ५० किलोची बॅग भरणे.
2 पाचशे ते हजार किलोची बॅग भरणे.
3 जमिनीत खड्डा खोदून त्यावर प्लास्टर करून घेणे नंतर दाबून कुटी भरणे व कल्चर takne व प्लास्टिक नेता प्लास्टिक ताडपत्रीने झाकणे हा उपाय आहे
2 कोणकोणत्या पिकांचा मुरघास तयार होतो. :- मका, ज्वारी, कडवळ, बाजरी हत्ती गवत या पिकांचा मुरघास तयार होतो.
अनुभव :- मुरघास कोणत्या पिकांचा बनवायचा ते समजले व कसा बनवायचा ते समजले. पॅक करण्याची पद्धत समजली व त्याची प्रमाण समजले हा अनुभव आला.
एक बॅग = 43 kg 15 बॅगा भरल्या. तर टोटल मुरघास किती झाला.
43×15= 645 एकूण 645 किलो मोर घास तयार झाला. पाच तासांमध्ये.
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प्राण्यांचे अंदाजे वजन काढणे .
उदेश :- अंदाजे वजन काढण्यास शिकणे .
साहित्य :- मीटर ,टेप ,पेन , वही .
कृती :-
1 सर्व प्रथम साहित्य जमा केले सूत्र समजून घेतले .
२ कोणकोणत्या गायीचे व शेळ्याचे वजन काढणार आहे ते ठरवले
३ मग गोठ्यात जाऊन गायीच्या छतिच्या घेऱ्या पासून गायीची शेपटी चालू होते तिथ पर्यंत लांबी घेतली .
४ मग सगळे मापे घेऊन शेषन मध्ये बसून छतिच्या घेरा २ *लांबी भागिले ६६६ या सूत्र वापरून हे वजन काढले .
निरीक्षण :-
गायीचे नाव | वजन |
लक्ष्मी | ७६.३७ किलो |
गौरी | ६०५ किलो |
सोनम | ४११ किलो |
शेळ्याचे वजन :-
शेळ्याची नावे | वजन |
कान टोचलेली काळी शेळी | ४२.२ किलो |
कान न टोचलेली काळी शेळी | २९ किलो |
पांढरी शेळी | ३६.९ किलो |
तांबडी शेळी | ३६.८ किलो |
बारीक काळी शेळी | १५.२ किलो |
न कान टोचलेली शेळी | ३४ किलो |
आफ्रिकन बोर ( बोकड ) | ३९.४ |
लाल शेळी | २१.२ |
छोट्या करडाचे वजने :-
करडाचे नाव | वजन |
A1 | ४.२ किलो |
A 2 | ४.२ किलो |
B 1 | ४ किलो |
B 2 | ४.३ किलो |
C 1 | ५.३ किलो |
C 2 | ४.७ किलो |
अनुभव :-पुस्तकातील सूत्रा प्रमणे गायीचे वजन निघाले नाही ते वजन अंदाजे पण चुकीचे आहे असे वाटले म्हणून आम्ही सरांना विचारले .
मग आम्हाल सरांनी सागितले ते चुकीचे वजन निघाले आहे तर तुम्ही= छातीचा घेरा २ * लांबी /६६६ हे सूत्र वापरून बघितल्या वर समजले .हे अंदाजे असू
शकते . यातून मी प्राण्यांचे वजन अंदाजे कसे काढायचे ते शिकलो . प्राण्यांचे चे वजन काढणे महत्वाचे आहे कारण त्याचे व्यवसाय करण्र्याला उत्पनाचा अंदाज येतो . काय कमी जास्त होत आहे ते कळत .
सोडवलेली गणित :-
= छातीचा घेरा २ * लांबी / ६६६
लक्ष्मी :- ११५६ * ४४ / ६६६ = ७६.३७ किलो , सोनम :- ४४८९ * ६1 / ६६६ = ४११.१५ किलो , गौरी :- ६७२४ * ६० / ६६६ = ६०५.७ किलो .
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शेतीच्य मोज मापकाचा अभ्यास करणे .
उदेश :- शेतीची जमीन मोजण्यास शिकणे .
१०० मीटर = ३३० फुट ७०० फुट = २१० मीटर
1 गुंठा=३३*३३ =१०८९ फुट = ३३० चोरस मीटर
४० गुंठे =1 1 एकर =४३५० sq. feet =13200 sq. meter
2.5 गुंठे एकर = 1 हेक्टर =१०८९०० sq. feet =3300 sq. meter
100 गुंठे = 1 हेक्टर .
1 एकर = ४००० sq. meter
हा प्लॉट किचन मागील बयोग्यास बाजूचा आहे त्याचे क्षेत्रफळ आहे .
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लांबी *रुंदी = क्षेत्रफळ
७० * ३० = २१०० चौरस फुट
= 1 गुंठा =१०८९ चौरस फुट
= २१०० / १०८९ = 1.९ गुंठे जमीन आहे .
1 एकर = ४३५६० चौरस मीटर =१०८९ / ४३५६० = ०.०२५
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रोप लागवडीची संख्या ठरवने
उदेश :- किती जागेत किती रोप लागतील ते ठरवण्यास शिकणे .
सूत्र :- रोपांची संख्या = क्षेत्रफळ / रोपांचे अंतर .
1 केळीची रोपे १.५ मीटर लांबी * 1.५ मीटर रुंदी या अंतरावर 1 एकर मध्ये किती रोपे बसतील .?
-) 1 एकर म्हणजे ४३५६० चौरस फुट तर लांबी व रुंदी ज्या एकक दिले आहे ते एक का प्रमाणे करू घेणे .
जसे :- 1 एकर म्हणजे ४३५६० चौरस फुट
तर आधी = एकर म्हणजे १३२०० चौरस मीटर केले पाहिजे .= क्षेत्रफळ = १३२०० /1.५*1.५ = १३२०० /२.२५ =५८६६.६
एवढे रोपे केळी म्हणजे ५८६६ रोपे एकर मध्ये लागतील बरोबर आहे कि ते चेक करण्यासाठी ही पद्धत :-
आलेली रोपे * लांबी व रुंदीचा गुणाकार करणे
२९३३ * ४.५ =१३२०० (१३.१९८.५ )
२ द्राक्षे रोपे मीटर लांबी *1.५ मीटर रुंदी या अंतरावर लावयाची तर १अक्र मध्ये किती रोपे लावू शकतो .
-) ४३५६० फुट ३.३ =१३२००
= क्षेत्रफळ = १३200 / ३*1.५ =१३२०० /४.५ =२९३३
द्रक्ष्याची रोपे ३ मीटर लांबी * 1.५ मीटर रुंदी या अंतरावर लावल्यावर २९३३ रोपे लागतील .
अट :- संख्या चे एकक सेम असले पाहिजेत . तरच रोपे किती लागतील ते समजते .
1 गुंठ्यामध्ये 1.५*1.५ फुटाचे किती रोपे लागतील .
-) 1 गुंठा = १०८९ फुट
क्षेत्रफळ आले = १०८९ फुट / 1.५*1/५ =२.२५ = १०८९/२.२५ =४८४ 1 गुंठ्यात 1.५*1.५ फुट अंतरावर ४८४ रोपे लागतील .
३ मक्याचे पिक 1 एकर मध्ये ७ किलो बियाणे लागतात तर 1 गुंठे जागेत किती बियाणे लागतील ?
-) ४० गुंठे = १ एकर
एकर मध्ये ७ किलो / ४० गुंठे तेव्हा 1 एकर
= ७ / ४० = ०.१७५
1 गुंठ्यात ०.१७५ किलो बियाणे लागतील
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पिक लागवडीसाठी जमीन तयार करणे
उदेश :- पिक लागवडी साठी जमीन कशी तयार करायची ते शिकणे .
साहित्य :- बिया
साधने :-खोरे , कोळप, बादली , वाट्या .
सर्व प्रथम जमीन निश्चित केली
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साहित्य गोळा केले .
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जमीन साफ करणे उदा :- दगड , प्लास्टिक , वनस्पती , अवशेष .
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शेताची फण पाळी करून जमीन समतोल करणे .
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पिकाच्या प्रकाश नुसार सरी, साऱ्या , गादी , वाफे , बेड तयार करणे .
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पाणी देण्यासाठी सोय करणे पाठ , पाणी ,तुषार सिच्यान, ,ठिंबक सिच्यान .
अनुभव :- कोण कोणते पिक कोणत्या वेळी लावतात . ते समजले . त्यांचे जागा कशी निशित करून साफ करणे हे कळाले ,बेड साऱ्या ,कशा तयार करायचे ते शिकलो .
पिके | kg /gm | क्षेत्रफळ |
मेथी | 1 किलो | ७२० sq. feet |
शेपू | २५० ग्रम | 320 sq. feet |
कोथिबिंर | ३८२ ग्रम | 720 sq. feet |
बिट | २५० ग्रम | 320 sq. feet |
मका | २००ग्रम | 2160 sq. feet |
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क्षेत्रफळ = २१९० sq. feet म्हणजे २ गुंठे
७२*३.३ = २१६० cm.
1 ओळीचे २१६० cm आहे .
२ बियाणे मधील अंतर 20 cm आहे . तर एका ओळीत बिया किती ?
:- २१६० / 20 cm = १०८ बिया
:- एक ओळीत बिया १०८ तर १५ ओळीत बिया किती ?
१५* १०८ =१६२०
या पूर्ण २ गुंठ्या जागे मध्ये १६२० बिया लावल्या आहेत .
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रोपे लावण्याच्या पद्धती
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आयात पद्धत :- जसे कि जास्त अंतरावर लागवड केली जाते त्यामुळे समजा एका आयतामध्ये बारा आंब्याची झाडे लावली तर दोन किंवा चार झाडांमधील जागा शिल्लक राहते व वर्षानुवर्ष झाडे राहिले तर ती जागा वेस्ट जाते व आपल्याला वर्षाला कमी नफा होतो. तू नफा बरोबर रहावा म्हणून त्यामुळे आपण त्याला दोन किंवा चार झाडांच्या मध्ये एक वेगळे पीक लावले जाऊ शकते जसे की कमी जागा घेणारे उंची कमी असणारे व कमी पसरणारे म्हणजे त्यांना व्यवस्थित सूर्यप्रकाश हवा खेळती राहते लागवड चांगली येते व जागा वेस्ट ही जात नाही शेतकरी मध्यम प्रमाणात या पद्धतीला वापरली जाते.
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चौरस पद्धत किंवा डायगोनल पद्धत :-चौकोनाच्या चार बाजू समान असतात त्यामुळे चार समान गोष्टी कोण मिळून चौरस तयार होतो व त्यामध्ये चार रुपये लागतात समान अंतरावर मधील जगाव वेस्ट राहते व चाहरी साईडला सूर्यप्रकाश हवा खेळती राहत नाही म्हणून त्याच पिकाचे रोप लावले जात नाही ते तेथे दुसऱ्या पिकाचे रोप लावून डायगोनियल पद्धत काढून मध्ये म्हणजे चौकोनामध्ये चार रोपांच्या ऐवजी पाच रुपये बसतील व शेतकऱ्यांना फायदा होऊ शकतो का. मध्ये जागा वेस्ट जाऊ नये म्हणून ही पद्धत आहे व हीच पद्धत जमिनीवर करण्यासाठी अतिशय सोपी असल्यामुळे शेतकरी ही पद्धत जास्त प्रमाणात वापरतो कमी नफा झाला तरीही हीच पद्धत वापरतो.
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त्रिकोण पद्धत:- ही पद्धत छोट्या जाण्यासाठी वापरली जाते व जास्त जागा असेल तर ते त्रिकोण आयात चौरस किंवा षटकोन तयार होतो त्यामुळे एका ठिकाणी पद्धत वापरली ठिकाणी पद्धत वापरली तर ती कमी जागेत उत्पन्न घेता येते समजून समभुज केल्यानंतर सेम अंतरावर तीन झाडे लावला लावता येतात व जमीन व रोपे असतील तर
यांचे कार्यकर्ते वाया जात नाहीत त्या दुसरा त्रिकोण जोडून आपण उत्पन्नासाठी जागा तयार करू शकतो त्यामुळे तो काही होत नाही व नफाही होत नाही जागा वेस्ट जात जागाही वेस्ट जात नाही पुढे जमीन विकत घेतल्यानंतर सेम अंतरावर रोपे लावता येतात व जास्त मेहनत जात नाही व उत्पन्न व्यवस्थित भेटते व जागा जागेचा तोटाही होत नाही कोणत्याही प्रकारची लागवड करू शकतो पूर्ण आंब्याची किंवा त्यामध्ये वेगळे घेऊ शकतो असे अंतरावर कमी लागवडीसाठी जास्त करून शेतकरी कमी जमीन असल्यावर असणारेच उपयोग करतात.
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षटकोन पद्धत :- ही पद्धत शेतकरी कमी प्रमाणात वापरतात कारण ही जमिनीवर काढता येत नाही अवघड आहे म्हणून षटकोन पद्धत वापरली जात नाही सहा त्रिकोण मिळून षटकोन तयार होतो या पद्धतीत शेत्रफळ साठी सूत्र वेगळे आहे व अवघडही आहे यामध्ये लागवडीसाठी उत्पन्नासाठी फायदा आहे षटकोन मध्ये सहा त्यामुळे त्यामध्ये सात रुपये लागतील षटकोनाचा चौरस केला तर त्याच्या बाजूच्या जागा वेस्ट जातात असे वाटते पण चारही कोपरे मिळून दोन त्रिकोण झाड दोन त्रिकोण तयार होतात सहा झाडे अजून लागू शकतात समजा लावली नाहीत तर त्या जागेत जोडून दुसरा षटकोन काढून रोपे जास्त प्रमाणात लावता येतील व आपली लागवडी चांगला होईल व वर्षं वर्ष तसेच राहू शकते व आपल्याला उत्पन्न जास्त प्रमाणात भेटेल व शेतकऱ्याला परवडेल पण शेतकऱ्यांसाठी ही पद्धत खूप अवघड असल्याने तो जास्त उपयोग नाही तर उपयोगात करत नाही असे मला वाटते
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कंटूर पद्धत :- कंटूर पद्धत म्हणजे ती एक झाड लावण्याची पद्धत नाही तर जमीन जमीन चढते किंवा उतरते किंवा खड्ड्यातली असेल तर ती एक समान करणे म्हणजे करणे म्हणजे कंटूर होय त्यामुळे तिला सरळ करणे व मग ग्रुप लागवड करणे हे महत्त्वाचे आहे सरळ करण्यासाठी ए फ्रेंड लावून लेवल मध्ये काढून अंतर ठरवून सरळ ओळींमध्ये लावणे महत्त्वाचे आहे नाहीतर झाडे कंटूर पद्धतीने लावली तर सरळ ओळीत लागत नाहीत अंतर कमी जास्त होते ठरवल्याप्रमाणे रोपे तेवढी लागत नाहीत अंतर चुकीचे झाल्यावर जवळ आल्यावर ताट झाडे लागतात मग काही झाडांना सूर्यप्रकाश मिळणार नाही व हवा खेळती राहणार नाही व ती झाडे एकदम उंची वाढत नाही व शेतकऱ्यांचे नुकसान होते दोन ओळी समजून येत नाहीत अंतर आपल्याला फवाराला जाण्यासाठी समजून येत नाही येत नाहीत आत मधी फिरण्यासाठी जागा ठेवणे खूप महत्त्वाचे आहेत दोन ओळींमध्ये अंतर पाहिजेच पाहिजे ट्रॅक्टरला येण्यासाठी काय आत मधी जागा लागते व आपल्याला फिरण्यासाठी फवारण्या करण्यासाठी आतमध्ये जागा ठेवणे महत्त्वाचे आहे संध्याकाळी काही दिवसांनी आपण पीक आल्यावर समजा आपण फळ विकली जाते किंवा जमीन विकली जाते समोरच्या लोकांना झाडे मोजता यावी व आपल्याला मोजून सांगता यावी त्यासाठी एक लाईन झाडे असणे महत्त्वाचे आहे त्यासाठी कंट्रोल पद्धतीमध्ये सरळ जागा करून झाडे लावणे एका ओळीत महत्त्वाचे आहे..
पिकांना लागणारे अन्नद्रव्य
उद्देश :- पिकांना लागणारे अन्नद्रव्य ओळखणे व त्यांच्या रोग आल्यावर किंवा त्यांची उंची वाढते का नाही बघणे व त्यांच्यावर उपचार करण्यास शिकणे.
अन्नद्रव्य :- नत्र
लक्षणे :-: झाडांची खालची पाणी पिवळ्या होतात व मुळाची झाडांची वाढ थांबते फोटो व फळे कमी येतात
उपाय : – १ परसेंट युरियाची फवारणी करावी (100 ग्रॅम प्लस दहा लिटर पाणी टाकावे.)
अन्नद्रव्य :- पालाश
लक्षणे :- पानांच्या कडा तांबड्या तांबट सर होऊन पानांवर तांबडे व पिवळे ठिपके पडतात खोड आखडून होऊन शेंडे गळून पडतात.
उपाय : – 0.5% सल्फेट ऑफ पोयोटेची फवारणी करावी (50 ग्रॅम प्लस दहा लिटर पाणी).
अन्नद्रव्य :- स्फुरद
लक्षणे :- पाणी हिरवट लांबट होऊन वाढते पानांची मागील बाजू जाणार होते.
उपाय : – एक पर्सेंट डाय अमोनिया फॉस्फरस ची फवारणी करावी.
अन्नद्रव्य :- लोहा
लक्षणे :- शेंड्याकडील पानांच्या शिरांमधील भाग पिवळा होतो झाडांची वाढ होते.
उपाय :- 25 किलो फेरस सल्फेट जमिनीतून शेणखता सोबत देणे किंवा 0.2% लोहाची फवारणी करावी.
अन्नद्रव्य :- बोरॉन
लक्षणे :- झाडांचा शेंडा व कोवळी पाने पांढरट होऊन मारतात सुरकुत्या पडून पिवळे चट्टे पडतात फळावर तांबडे ठिपके पडून भेगा पडतात.
उपाय :- वीस ते तीस ग्रॅम बोरिक ऍसिड पावडरची दहा लिटर पाण्यातून पानावर फवारणी करावी.
अन्नद्रव्य :- जस्त
लक्षणे :- पाणी लहान होऊन शिरांमधील भागात पिवळा होतो व पाने ठिकठिकाणी वाळलेली दिसतात
उपाय :- हेक्टरी दहा ते वीस किलो जिंक सल्फेट जमिनीतून शेणखता सोबत देणे किंवा 0.2% चिलेटेड जिम पिकावर फवारावे.
अन्नद्रव्य :- मंगल
लक्षणे :- पानांच्या शिव्याने शिऱ्या हिरव्या व शिरांमध्ये भाग क्रमाक्रमाने पिवळा होतो व नंतर पांढरे व करडा होतो संपूर्ण पाणी फिकट होऊन नंतर पाणी गळतात.
उपाय:- हेक्टरी दहा ते 25 किलो मॅग्नीज सल्फेट जमिनीतून शेणखतासोबत द्यावे किंवा 0.2% मंगल ची फवारणी करावी (वीस ग्रॅम प्लस दहा लिटर पाणी)
अन्नद्रव्य :-मेली ब्लेडम
लक्षणे :- पाणी हिरवट होऊन त्यावर तपकिरी ठिपके पडतात पानाच्या मागच्या बाजूने तपकिरी डिंकासारखा द्रव्य स्त्रवते.
पाय :- हेक्टरी पाब ते अर्धा किलो सोडी माली ब्लेड जमिनीत द्यावे.
अन्नद्रव्य :- तांबे
लक्षणे :- झाडांच्या शेंड्याची वाढ कुठे झाडांना डायबॅक नावाचा रोग होतो खोडाची वाढ कमी होते पाणी लगेच गळतात.
उपाय :- मोरचूद चाळीस ग्रॅम दहा लिटर पाण्यात मिसळून फवारावे.
अन्नद्रव्य:- गंधक
लक्षणे :- झाडांच्या पानाच्या मुळाचा हिरवा रंग कमी कमी होत व नंतर पाणी पूर्ण पिवळी पांढरी पडतात .
उपाय :- हेक्टरी 20 ते 40 किलो गंधक जमिनीतून द्यावे.
अनुभव :-
१ शेतामध्ये गेल्यावर चवळी या पिकाचे पान त्याच्या कडा तांबट सर होऊन पानावर तांबडे व पिवळे ठिपके पडले होते त्यामुळे त्याला पालाश हे अन्नद्रव्य कमी असावी असे आम्हाला वाटते.
२ पॉलिहाऊस पॉलिहाऊस जाऊन पालक याच्या शेंड्याची पाने बघितली तर पिवळसर पडली होती व असे वाटत होते की त्यांची वाढ होत नाही म्हणून त्याला मॅगनीज व ज्येष्ठ अन्नद्रव्य कमी पडले असावे असे वाटते.
३ चवळीच्या प्लॉटमध्ये एका पानावर शिरा मधील भाग पिवळा पडला होता व पाणी ठीक ठिकाणी वाळलेली होती म्हणून त्याला जास्त अन्नद्रव्य कमी झाले असेल असे मला वाटते.
वनस्पती संरक्षण उपक्रमांचा वापर व उपयोग
उद्देश :- वनस्पतींना फवारण्यास शिकणे व त्यांचे संरक्षण कसे करणे व त्यांचा वापर कसे करणे हे पण शिकणे.
साहित्य :- पंप, दहा लिटर पाणी दहा एम एल, पॉली ट्रेन औषध
फवारणी करताना घेतली जाणारी काळजी :-
१ फवारण्याआधी जास्त पाण्याने स्वच्छ धुऊन घेणे.
२ पाणी व औषध यांचे प्रमाण निश्चित करून घ्यावे.
३ फवारणी करण्यापूर्वी हॅन्ड ग्लोज मास शूज इत्यादी सेफ्टी करून काम करणे.
४ फवारणी करताना नजर व्यवस्थित पाण्याने सोडते का नाही ते बघणे व रॉकेल नि धुणे.
५ फवारणी करताना ते केलेले फवारणीचे द्रावण आपल्या शरीरावर उडणार नाही याची काळजी घेतली पाहिजे.
६ फवारणी झाल्यावर ते व्यवस्थित स्वच्छ धुवून घ्यावे व त्या ला निश्चित केलेल्या जागेवर नेऊन ठेवणे.
७ फवारणी करताना धूम्रपान किंवा काही पदार्थ खाऊ नये
पंपाचे प्रकार :-
१ power duster
2 hand spray
3 knapsack Power spray
4 knapsack operated power sprayer
5 hand operated power sprayer
6 spray gun
7 nozzale.
निरीक्षण : – स्प्रे पंपाचे सर्व भाग आणि त्यांनी केलेले कार्य रेकॉर्ड करा.
अनुभव :-
१ फवारणी ही वनस्पती ला रोग किंवा कीड लागल्यावर करणे हे कळाले.
२ त्या औषधांचा इफेक्ट चार ते पाच दिवसांपर्यंत राहतो.
३ त्यांचे प्रमाण समजले.
४ व कशा कशाने फवारायचे ते समजले पद्धती समजल्या.
५ व फवारणी करताना कोणती काळजी घ्यावी ते समजले
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पिकाला पाणी देण्याची पद्धती
उद्देश :- पिकांना कोण कोणत्या पद्धतीने पाणी देयाचे ते शिकणे.
आकृती क्रमांक( A +) :- त्यामध्ये मोकळे पाणी सोडणे .या पद्धतीने जास्त वाया जाते.
आकृती क्रमांक (A) यामध्ये पाटाने पाणी सोडणे पिकाला त्यामुळे आकृती क्रमांक. (A+) पेक्षा कमी वाया जाते.
आकृती क्रमांक( B) त्यामध्ये साऱ्याने पाणी सोडले जाते यामध्ये आकृती क्रमांक एक पेक्षा कमी जाते.
निरीक्षण :-
क्षेत्रफळ | २१६० sq.feet |
वेळ | १२ मिनिटे |
पाणी | ३६०० लिटर |
तुषार सिंचन पद्धत :- यामध्ये पाणी फवारले जाते व जास्तीत जास्त लांब जाते शेतासाठी महत्त्वाचे आहे. रेनगन वापरणे हे शिकण्यासाठी आम्ही किचन मागील प्लॉट तयार करून म्हणजेच स्वच्छ करून दगड प्लास्टिक गवत उचलून टाकले व ट्रॅक्टरने नांगरले व त्याच्या मध्ये राजगिराचे बी पेरले व त्याच्यावर परत नांगरणे हे करून ते बुजवले. पाणी मारण्यास मला गरजेचे असल्यामुळे आम्हाला रेनगन कशी चालते हे बघण्याचे होते तर आम्ही ती तिथे लावून त्या प्लॉटला पाणी दिले व नंतर ला किती लांब उडाले तिथपर्यंत 57 फीट लांब पाणी गेले असे आम्हाला समजले पाणी जाते फवारले जाते शेतीसाठी हे महत्त्वाचे आहे.
तुषार सिंचन तोटे :- यांनी ट्रान्सपोर्ट राहतो म्हणजे चार ठिकाणी लावले तर जवळजवळ तर मध्ये पाणी फवारले जाते पण त्याच्या आतील त्या भागात फवारले जात नाही जसे की आकृती चार संकल्पना करून मी त्याच्यामध्ये जागा दाखवली गेली आहे.
हवा आल्यानंतर ज्या दिशेने हवा आहे तसेच पाणी उडत समजा आपल्या शेतातून दुसऱ्या दिशेने वारे जात असेल व त्या दिशेला दुसऱ्याच्या शेतात पाणी हे फवारले जाते.
ऊन म्हणजेच खताचे बाष्पीभवन होऊन जाणे तेव्हा पण आपले नुकसान होते.4*4 फूट 15*15 फूट 40*40 फोटो या रेंजमध्ये येतात.
तुषार सिंचनामध्ये 25 टक्के पाणी वाया जाते.
तुषार सिंचन मोटरला पाईप लावून त्याच्या साह्याने लोजर पर्यंत व जाऊन पावसासारखे फवारते त्याला तुषार सिंचन असे म्हणतात.
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लेयर पोल्ट्री अर्थ कारण
उदेश :– पोल्ट्री तयार करण्या आधी त्या पोल्ट्री चा अव्रेज काढण्यास शिकणे
जागा :- ३२*12 फुट चे शेड व बांधकाम .
बांधकाम खर्च :- प्रमाण : 1:३ मोर्टर (३*४*९ ) इंचाच्या इटा =१३०० =१०४०० रुपये
वाळू (कच ) =०.२४२ ब्रास =६३१ रुपये
सिमेंट = १७२ किलो = १२०४
मजुरी ३५% = ३०५८.७५
टोटल = १५२९३.७५
प्लास्टर खर्च :- प्रमाण :- 1: ३ मोर्टार
वाळू :- (कच ) = ०.१८९ ( ब्रास ) =४१४.४ रु
सिमेंट :- = २७० किलो = १८९० रु
मजुरी :- = २५% = ५३५
टोटल = २९७६.५
कोबा खर्च :- प्रमाण :- 1:२:४
= वाळू = ०.१५२ ब्रास = ३९५.२
= सिमेंट = ३२७.२३ किलो = २२९०.६१
= खडी = ०.३०४ ब्रास = ६९९.२
= मजुरी = २५% = ८४६.1
= टोटल = = ४२३०.५ रु
शेड खर्च :- (कैची )
गोल पाईप = (1 इंच ) = १६५ फुट = ९००० रु
sq. tube = (२*२ इंच ) = १३० फुट = ७१५० रु
जाळी = ११५२ sq. feet = 86 किलो = १४६३० रु
हुक = = ६४ नग = ३२० रु
पत्रे = (६*३.३३ ) = 20 नग = १४४०६ रु
c पाईप = ९ नग = ७२ फुट = १२६०० रु
इतर खर्च = ८ वस्तू = ७००० रु
मजुरी = ३५% = १६१९५ रु
टोटल खर्च = = ८०९७५ रु
जर :- ३२*12 मापाचे पोल्ट्री करण्यास खर्च
बांधकाम खर्च =२२५०० रु
फाय्ब्रीकेषण = ८०९७५ रु
इतर खर्च ( लाईट फिटिंग , प्लंबिंग , =५००० रु
टोटल खर्च = १०८४७५ रु सरासरी :- ११०००० रु
पिंजरा = १०*५ चे ३ बसतील पिंजरे शेड मध्ये ३२*12 च्या बसतील .
३२*12 = ३८४ sq. feet .
तर 1 कोंबडीला जागा ही ६० इंच
तर = ३८४ * 12 = ४६०८ इंच
तर =६० \४६०८
= ७७ पक्षी बसतील .
१२० ग्रम * ३६० = ४३२०० ग्रम ,३६० पक्षान ,1 दिवसाला
कोंबडीचे खाद्य लेयर पक्षी :- १२०ग्रम = १दिवस = 1 पक्षी
१५५५२ किलो खाद्य = १७५० रु = ९० किलो , तर ३५ रु ,1 किलो
३५ रु = १००० ग्रम , =३.५ रु = १०० ग्रम , = ४.२ रु = १२० ग्रम .
1 पक्षी १२० ग्रम खाद्य , 1 पक्षी 1 अंडे
1 अंडे खर्च :- खाद्य = ४.२ ब, मेडीकॅल= ० .२
४.२+ ०.२ = ४.४ खर्च :- 1 अंड्यासाठी =४.५५-४.४ = ०.१५ पैसे नफा 1 अंड्या मागे
अंड्या चा रेट online बगीतला तर ४५५रु , १०० अंडी
1 अंड्याची किंमत ४.५ रु
मेडीसीन :- ब्रोटोन :- 12 दिवस – १मिहिना
१०० ml – ७५० रु
लासोटा = १२० रु + १४४० = २१९० रु .
एकून खर्च :- ८१००० + ५४४३२० + २१९० = ६२७५१० रु
उत्पादन :- ९५% :- ३६० * ९५% \१०० =३४२ अंडी दिवसाला
३२४*३० = १०२६० =अंडी 1 महिन्याला
तर =१०२६०* 12 =१२३१२० अंडी , 12 महिन्याला
१२३१२० * ०.४२ हा online रेट =५१७१० रु फायदा .
३६० पक्षांचा = ५१७१० फायदा \ 12 महिने = ४३०९.२ रु
१२२३ , १२०* ४.८२ =५९३४३८ .४ रु
३६०* १२० = ४३२०० रु
टोटल = ५=६३६६३८ . रु
लेयर अंड्याचा fcr काढणे :- सूत्र :- fcr =दिलेले खाद्य \ दिलेलेली अंडी डझन मध्ये ब.
fcr २ पेक्षा जास्त असेल तर खाद्य जास्त जात आहे . व परवडत नाही .
१०० पक्षी = १४ किलो खाद्य = १००-९५ अंडी \12 डझन = ७.९१ डझन आहेत .
१४ \ ७.९१ =fcr =१. ७६
बॉयलर पक्षी खाद्य व जागा :-
जागा :- पूर्ण वाढलेल्या पक्षाला २ sq. feet जागा लागते .
2000 पक्षान = ४००० sq. feet जागा शेड लागणार .
पहिल्या दिवसाचा पक्षी बांधलेल्या जागेच्या अर्ध्या भागात ठेवावा .
म्हणजे :- चार आठवड्याच्या पक्षान किवा ३० दिवसाच्य पक्षांना पूर्ण बनवलेल्या जागेत ठेवू शकतात .
कारण :- पक्षी आपली फिरून एनर्जी वाया घालवतो व पक्षांना गर्दी होते किंवा अमोनिया हा रोग होतो त्यामुळे.जागेचा नीट विचार करावा.
ब्रूडिंग :- म्हणजे हिट इनक्युबेटर मधून पक्षी बाहेर आल्यावर 35° c मध्ये ठेवावा कारण इंक्युब्युटर मध्ये 35 डिग्री सेल्सिअस तापमानात असतो.
दुसरा उपाय:- दोनशे व्हॅटचे ब्लफ लावणे जर पक्षांना वीस ते पंचवीस ब्लब लागणार.
पाण्याची भांडी:- 30 पक्षांना एक भांडे पाण्याचे व एक भांडे खाद्याचे लागते
लसीकरण :-
एक आठवडा | मॅरेकस |
पाच वा दिवस | लासोटा |
तेरावा दिवस | गंबोरा |
21 वा दिवस | लासोटा |
अ .क्र | वय (आठवडा) | गादी पद्धत फूट प्रति पक्षी |
1 | 0 ते 3 | 0.5 (अर्धा) |
2 | 4 ते 6 | 1 (पूर्ण) |
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सुख्या झाल्यावर प्रक्रिया करणे
उद्देश :- सुक्या चाऱ्यावर प्रक्रिया करण्यास शिकणे.
साहित्य :- सुखाचारा, पाणी, गुळ, मीठ,
साधने :- कुटी मशीन, बादली, ताडपत्री, ग्राइंडर.
कृती :- शेतातून कट करून आणणे.
⬇️
. कुटी मशीन जवळ आणणे व कट करणे
⬇️
एक ठिकाणी गोळा करणे
⬇️
पाच लिटर पाण्यामध्ये दोनशे ग्रॅम गूळ व एक लिटर पाण्यामध्ये मीठ टाकून पाणी मिक्स करून दोन्ही घेणे.
⬇️
ताडपत्री अंथरून त्याच्यावर चाऱ्याचा एक थर करून त्याच्यावर द्रावण शिंपडावे
⬇️
नंतर तो राहिलेला चारा त्या चाऱ्यावर अंतरंग परत राहिलेले शिल्लक द्रावण त्यावर शिंपडावे.
⬇️
मिक्स करावे हाताने पूर्ण
⬇️
सात तासांपर्यंत झाकून ठेवावे मग तुमच्या चाऱ्यावर प्रक्रिया झाली तयार.
प्रमाण :- 100 किलो सुखाचारा ला पाच लिटर पाण्यामध्ये दोन किलो गुळ व एक किलो मीठ टाकून द्रावण तयार करावे
अनुभव :- 1 गाईंना महिन्यातून एकदा तरी बोल खायला द्यावा
2 गुळाने पचनक्रिया चांगली होते.
. 3 मीठ गाईने मिठाने गाईचे तहान वाढते गाय पाणी जास्त पितात.
. 4. सुखाचाऱ्याचा कसा उपयोग करायचा त्याची प्रक्रिया कशी करायची व करून खायला खाण्यासाठी कसे तयार करायचे ते समजते.
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शेतातील तन यंत्र (गवत)
उद्देश :- शेतातील तन यंत्र करण्यास शिकणे (वेस्ट गवत मारण्यास शिकणे).
व्याख्या :- आपल्याला न लागणारे व न लावता येणारे गवत म्हणजे तन होय.
तणामुळे होणारे नुकसान :-
1 हवा खेळती राहत नाही.
2 प्रकाश आणि अन्नद्रव्यांसाठी स्पर्धा होते.
3 किडींचा प्रभाव पडतो.
4 लागवडीचा खर्च वाढतो
5 पाणी व्यवस्थित झाडापर्यंत पोहोचत नाही.
तन नियंत्रण करण्याच्या पद्धती :-
1 भौतिक पद्धत :-
a जमीन ओली असताना हाताच्या साह्याने गवत उपटून काढणे.
b खुरप्याच्या साह्याने गवत काढणे.
c जमिनीची खोल नांगरट करावी.
2 रासायनिक पद्धत :-
A विशिष्ट रसायनांच्या मदतीने त्यांना आमचे नियंत्रण केले जाते उदाहरणार्थ :- 24d, ग्लायफोसेट.
b प्रसंगांचा वापर दोन पद्धतीने केला जातो.
1 सिलेक्टिव्ह
2 नॉन- सिलेक्टिव्ह
पेरणीपूर्वी :- उदा :- सोयाबीन शेती करताना पेरणी बरोबर जमिनीत चांगली ओल असताना व्हेअर लॉटे ,trifaulralin. पेरणी च्या फवारले जाते.
कॉन्टॅक्ट : vd साईड ( संपर्कजन्य तन नाशक) :- तन नाशक फवारताना दुसऱ्या झाडावर फवारणी केल्यास ती झाडे किंवा रोपे मारली जातात.
उदा :- प्यारो कोट, डायक्लोराईड.
तणनाशक फवारता ना घ्यायची काळजी :-
1 जमिनीत चांगली ओल असावी.
2 फवारणीचा पंप चांगल्या प्रकारे धुवून घ्यावा.
3 एकाच ठिकाणी जास्त वेळ फवारू नये.
4 तोंडाला मास्क बांधावा.
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कलम करणे :- कलमांच्या पद्धती व कलम करण्यास शिकणे .
साहित्य :- चाकू, सुतळी, पिशवी, वनस्पती.
कलमांच्या दोन पद्धती :-
पाचर कलम :– हे कलम पाचर करून केले जाते म्हणजे ज्या झाडाला कलम करायचे आहेत त्यामधून दोन भाग सारखे पाचर करणे व ज्याचे कलम करण्यासाठी घेणार आहे त्याला डोळा असला पाहिजे म्हणजे त्या कांडीला हो घेऊन श्लोक सारखा कट करावा दोन्ही बाजूने व त्या दोन्ही एकत्र करून त्यांना पिशवी काढून दोरे सारखे करून त्या काल मला बनवायची घट्ट यालाच पाच रुपयाला असे म्हणतात.
गुटी कलम :- हे कलाम डाळिंबाला करताना पाहिले आहे डाळिंबाच्या झाडाचे कलम करणारे आहोत ती फांदी पाहणे व त्याची पाने किंवा काड्या काढणे व डोळे कुठे कुठे आहेत ते बघणे नंतर जिथे कलम करायचे आहे तिथे डोळा बघणे व थोडेस वर किंवा खालच्या साईडला जागा बघून तिथे गोल राऊंडमध्ये अर्धा इंच साल सोडून समजा एकाच फांदीला दोन ते तीन ठिकाणी कलम करायचे आहे असेल तर तीन डोळे सोडून चौथ्या डोळ्याजवळ कलम करणे तेथेच सोडल्यावर शिवाचे धागे भिजून घेण तेव्हा तिथे लावणे व त्याच्यावर पाच बाय सहा ची पिशवी गुंडाळणे व सुतळीने बांधणे घट्ट मग झाले तुमचे कुट्टी कलम गुप्ती कलम मध्ये 21 दिवसांनी मुळ्या फुटतात तीस दिवसांनी ते कलम सोडायचे असते बघायचे किंवा कलम झाले की नाहि.
अट :- हे दोन्ही कलम करताना घट्ट बांधले कारण या हवा किंवा पाणी लागले तर कलम होत नाही.
हे कलम फक्त थंड वातावरणात करावी नाहीतर ते होत नाही.
कलम म्हणजे काय?
एखाद्या झाडाचा काहीच उपयोग नसतो त्याला चांगल्या झाडांची फांदी जोडणी त्या प्रक्रियेला कलम असे म्हणतात.
लागवडीच्या पद्धती:– बिया खोड पान वनस्पती यांचा प्रसार होतात.
प्राण्याच्या वजनावरना खाद्य काढणे
उदेश :– वजना वरना खाद्य काढण्यास शिकणे .
लाल शेळी चे वजन :- ३९ किलो
आपण टाकलेले खाद्य : – मुघास :- २किलो , सुखाचारा :-३००ग्रम , खुराक :- २५% , ओला चारा :- ९५%
३९ वजना पिक्षा ३पट चारा जास्त द्यावा लागतो . =३९* ३ =1.१७ किलो ( सुख चार )
खुराक :- २५% 1.१७ * २५\१०० = ०.२९ खुराक
हिरवा चार ७५% :-1.१७ * ७५ \१०० =०.८७
सुखाचारा :–
सुखा चार २५%= ०.८७ *२५\१०० = ०.२१ *२ पाणी असते चारयातम्हणून घेतले २ =०.४२
हिरवाचारा :- ७५% = ०.८७* ७५\१०० =०.६५ ————————————३.२५
1 खुराक :- २९० ग्रम
२ सुखाचारा :- ४२० ग्रम
३ हिरवा चार :- ३.२५ किलो ग्रम
अनुभव :- कोणत्याही प्राण्याचे वजनावरुन खड्या काढता येते .
प्राण्यांच्या तापमानाचे रेकॉर्ड ठेवणे
उद्देश :- प्राण्यांचे तापमान मोजण्या शिकणे.
साहित्य :- थर्मामीटर डिजिटल , फडका
कृती :-
1 सर्वप्रथम सर्व साहित्य गोळा केले.
2 गाईला किंवा बोकडाला घट्ट पकडून व बांधून ठेवले.
3 गाईची शेपटी हाताने वर पकडून धरली नंतर थर्मामीटरने त्यांच्या शेण येते त्या भागात आत मध्ये पाच सेंटीमीटर घालावे.
4 प्राण्यांचे तापमान हे 100 डिग्री सेल्सिअस ते 102° पर्यंत नॉर्मल असते त्यामुळे 102°c च्या वर गेल्यास त्या प्राण्याला आजार आहे तापाचा.
5 मग ते थर्मामीटर मध्ये तापमान 100.6 डिग्री सेल्सिअस तापमान गाईचे आले व 101.9°c बोकडाचे आले.
6 म्हणजे गाईला व किंवा बोकडाला शेळीला ताप नाही किंवा त्यांची तापमान बरोबर आहे.
ताप येणे कशावरून ओळखणे?
आपण मोजून खाद्य टाकले व त्यांनी खाल्ले नाही तर समजते की अंदाजे ताप आला आहे ते कन्फर्म करण्यासाठी सर्वांचा वापर करणे व १०२ डिग्री सेल्सिअस चा वर गेल्यावर तापमान आला आहे असे समजते.
अनुभव :- जसे मानवाला ताप आला तर माणूस सांगतो तोंडाने किंवा स्पर्श करून समजते तसेच प्राण्यांना बोलता येत नाही म्हणून त्याचे ताप किंवा तापमान मोजण्याचे गरज आहे ताप आल्यावर प्राणी कमजोर होतो किंवा दूध कमी होते व खाद्य खात नाही यावर ना समजते की ताप आला आहे.
निरीक्षण :-
नावे | तापमान |
गौरी | 100.6 डिग्री सेल्स |
सोनम | 100.9 डिग्री सेल्सिअस |
मोठी काळी शेळी | 101.8°c |
बारकी काळे शेळी | 102.1 डिग्री सेल्सिअस |
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बीज प्रक्रिया करणे
उद्देश :- बीज प्रक्रिया करण्यास शिकणे.
बीज प्रक्रिया म्हणजे बीज लावण्याआधी बियांवर केलेली प्रक्रिया म्हणजे 20 प्रक्रिया होय
साहित्य :- पाणी मीठ व बियाणे भांडी इत्यादी
कृती :– जसे की कुठलीही बियाणे बघून घ्यावी समजा सोयाबीन बी घेतली तर त्यावरील वजन किंमत व्हॅलिडीटी या बियांचे अनुवंशिक शुद्धता किती टक्के आहे त्या बिया मधील किती टक्के बिया उगवतात ते बघणे व शारीरिक शुद्धता किती टक्के बघणे हे बघणे पॅकेटवर हे लिहिले असते मग त्यावरून समजते की आपल्याला किती बॅग उगवतात व आपल्याला उत्पन्न किती होईल ही पॅकेट घेण्याआधी बघणे जरुरी आहे त्याच्यामुळे बीज प्रक्रिया करताना आधी प्रक्रिया झालेली आपल्याला या पॅकेट वरून समजते.
भौतिक पद्धत :- म्हणजे केमिकल वापरलेली बी होय.
30 ग्रॅम मीठ एक लिटर पाण्यात याप्रमाणे 300 ग्रॅम मीठ दहा लिटर पाण्यात द्रावण तयार करून घेणे तयार केलेल्या द्रावणात त्याने आठ ते दहा मिनिटे बुडवून ठेवावे बियाणे ढवळावे वर खाली करावे.
टीप :- पाण्याचे वरती तरंगलेले बिया खराब असते जसे कीड लागलेले व अर्ध तुटलेले वजन कमी असलेले ते बाजूला काढणे ते बी उगवत नाही
अरबट हा रोग असतो तर ज्वारी व बाजरी बियाणात ही प्रक्रिया केली जाते.
भातावरील करपा रोगाला या प्रक्रियेने नियंत्रण ठेवता येते.
उष्ण जल ( गरम पाण्याचे प्रक्रिया ) :- 47° असते 54 डिग्री सेल्सिअस तापमानात हे बियाणे चार ते पाच तास भिजवून ठेवले जाते.
उसावरील गवताला वाढ नियंत्रण ठेवण्यासाठी या प्रक्रियेला वापर केला जातो.
रासायनिक बीज प्रक्रिया :-
गंधक ( सल्फर ) :- चार ग्रॅम गंध एक किलो ज्वारीच्या बियाण्यास लावल्यास दाणे कानी व मोकळी काळी या रोगाचा पार दूर भाव होत नाही.
थायरम :- 2.5 ग्रॅम थायरम प्रति किलो बियाणे :- घेवडा वाटाणा गहू सोयाबीन मका दोन ग्रॅम थायरॉईड प्रति किलो वाटण्यास करडई सूर्यफूल भुईमूग पाच ग्रॅम प्रति किलो बियाण्यास.
कॅप्टन :- दोन ग्रॅम प्रति किलो बियाणे भात मका ज्वारी वाटाणा घेवडा आणि दोन पॉईंट पाच ग्रॅम प्रति किलो भुईमूग बियाण्यास.
कार्बन्डझीम :- दोन ग्रॅम प्रति किलो बियाण्यास करडई सूर्यफूल भात.
कीड लागलेल्या झाडांच्या पानांचे नमुने गोळा करणे .
उद्देश :- पानावर च्या किडी ओळखणे शिकणे.
वांगी :-
लक्षणे :- फळाला होल पडले आहे, फळ कापल्यानंतर आणि दिसत आहे
कीड :- फळ पोखरणारी अळी.
यासाठी आम्ही पेरूची मिरची वांगी मका चवळी पालक यांचे नमुने आणून बघितले व त्यावरच्या अळी व रोप पाहिले.
पालक :- पानावर पांढरे चट्टे व खडबडीत होते म्हणजे या पानावर रस शोषणारी अळी आली होती असे वाटते.
रोज असणाऱ्या शोषण करणाऱ्या किडी :- या प्रकारच्या किडी रस शोषून घेतात रस शोषलेला भाग खडबडीत किंवा चेहऱ्यावर घामाला आल्यासारखा दिसतो
उदा :- तुडतुडे,मावा,पांढरी माशी,कोळी.
पेरूचे पान :- चांगले पाणी ही दोन्ही साईडून प्लेयर दिसली व खडबडीत नव्हते.
खराब पान :- त्यावर दोन्ही साईडून खडबडीत होते व पांढरे ठिपके होते त्या पांढरे ठिपक्यांना नोकरी मावा रोग होतो असे म्हणतात त्या पणाला हा रोग झाला होता व खडबडीत होते.
सुभाबळ :- या पानामागे चिकटपणा होता. या चिकटपणा रोगाला हा रोग म्हणतात हा रोग शोषणारी. किडीमुळे होतो
थ्रिप्स तुडतुडे :- मिरची पाणी मिरचीच्या पानावर चहा चेहऱ्यावर घामोळे आल्यावर दिसते तसे पानावर घामुळे आल्यासारखे दिसतात थ्रिप्स झाल्यावर मिरचीची पाणी खालच्या बाजूने दुमडलेली होती त्यामुळे त्यांना थ्रिप्स हा झाला असे अनुभवले.
मकाच्या झाडाचे खोड व व पान खाल्लेले दिसले खोड किडा व खोड पोखरणारी आणि त्यावर होते असे आम्हाला अनुभवले.
पानावर केली ओळखण्यास व रोग ओळखण्यास शिकलो या केळी पानांवर होल पाडतात व फळांवर सुद्धा बोलतात पांढरी व काळे ठिपके असलेले तर तो मावा रोग असतो पांढरे ठिपके ही पाळणार असतात.
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फवारणीची द्रावण तयार करणे
उद्देश :- फवारणी चित्रावर तयार करण्यास व त्याचे प्रमाण वाढणे शिकणे.
साहित्य :- पंप औषधे पाणी मास्क.
कृती :-
1 सर्वप्रथम पंप भरून पाण्याने धुतला.
2 नंतर नोजल साफ करून पाणी व्यवस्थित होते ते चेक केले.
3 नंतर तीन लिटर पाण्यात निम ऑइल वन मायक्रो न्यूट्रिन ही पावडर 25 ग्रॅम टाकली
4 पंप 15 लिटर पाण्याने भरून घेतला व ते मिश्रण हलवले मास्क घातला.
5 व पेरूच्या बागेला वांचा प्लॉटला व चळवळीला वांगी मिरची या प्लॉटला फवारणी केली.
6 बारा वाजल्यानंतर फवारणी करून पण खूप होते व औषधाचे बाष्पीभवन होते.
प्रमाण :- एक लिटर पाण्यात दोन एम एल ऑइल, पवार 15 लिटर पाण्यात न्यू ट्रेन पावडर 25 ग्रॅम.
हे पेरूच्या झाडांना द्रावण नोकरी मावा ही कीड व रोग असल्यामुळे फवारले होते.
चवळीच्या पानांवर काय ठिपके होते म्हणून त्यांना काळा मावा हा रोग होता असे अनुभवले म्हणून त्यावर आम्ही 15 लिटर पाण्यात 20 एम एल ने मोडेल टाकून द्रावण तयार केले व फवारले.
Azadriachin या औषधात मध्ये असणारे घटक :-
अजाडसेकटीन स. त न्यूनंतम | 0.03% |
हांइड किसल ई एल पॉली आक्सी | 5.00% |
निम तेल | 90.57% |
इथलीन इथर | 0.50% |
ईपक्लोरोहाइड्रन | 0.50% |
एऱी मेक्स | 3.90% |
मायक्रो न्यूट्रिंक मधील घटक :-
नावे | टिपिकल analysis w/w | MH ग्रेड नो 2 | Fdiar w/w |
Fe EDTA | 5.0% | 2.5% | 0.5% |
mn EDTA | 2.5% | 1.5% | 0.5% |
zn EDTA | 3.5% | 3.0% | 3.0% |
Cu EDTA | 1.0 % | 1.0% | ——- |
B | 0.65 % | 0.5% | 0.1% |
MO | 0.30% | 0.1% | ——– |
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बिया उगवण्याची क्षमता
उद्देश :- बिया उगवण्याची क्षमता बघण्यास शिकणे.
साहित्य :- पाणी, बिया ,वाटी.
कृती :-
१ सर्व साहित्य गोळा केले.
२ प्रयोगासाठी व प्रॅक्टिकल साठी आम्ही शिल्लक राहिलेले धन्याचे बी घेण्यास ठरवले व घेऊन आलो शिल्लक राहिलेले.
३ आम्हाला दोन्ही पद्धत काढण्यासाठी व त्यांच्या मधले निरीक्षण करण्यासाठी आम्ही शंभर शंभर बिया घेतल्या त्यामध्ये शंभर बिया वाटेमध्ये घेऊन त्या बुडतील एवढे पाणी घेतले.
४ व तीन तास पाण्यातच ठेवून भिजवण्यासाठी ठेवल्या.
५ त्यामधील खराबी तरंगायला लागले व चांगले बी तळाशीच राहिले.
६ त्यावरून आम्हाला समजले की किती बिया उगवतील व उगवण्याची क्षमता किती आहे त्या बियांची.
७ व ही घरची सोपी पद्धत आहे बियांची उगवण्याची क्षमता बघण्याची.
उगवणाऱ्या बियांची क्षमता बघण्याचे सूत्र :- मोड आलेले बी ÷एकूण बी× १००.
अनुभव :- यामध्ये बिया उगवण्याची क्षमता समजते व त्यावरून आपल्याला किती बिया उगवणार हे समजते यावरून शेतकऱ्यालाही नुकसान होऊ नये असा एक फायदेशीर फायदेशीर आहे व यासाठी समजा आपण पॅकेट घेतल्यावर आपण त्याचे वाचन करता येत नसेल किंवा ज्याला इंग्रजी वाचता येत नसेल तर त्यांनी बिया किती उगवणारी बघण्यासाठी साधं घरगुती उपाय आहे त्यामुळे बियाणे पॅकेटवर दिलेल्या बिया उगवण्याची क्षमतेनुसार त्यावर तेवढ्या बियाणे उगवली नाही तर ते पॅकेट कंपनी परत करून देता येते आपल्याला आपले दुसरे बियाणे बदलून किंवा पैसे परत भेटतात व बियाणे उगवण्याची क्षमता माहिती असेल तर आपण आवर्जून लावू शकतो व किती बिया येथील याचा अंदाज ही लावू शकतो व शेतकरी तोट्याची जाणार नाही हे सुद्धा कळते व आपल्याला अंदाजही राहतो उत्पादन बऱ्यापैकी भेटते.
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दुधातील भेसळ ओळखणे
उद्देश :- दुधातील भेसळ ओळखण्यास शिकणे
साहित्य :- हात ,दूध, पाणी , ग्लास ,फरशी.
कृती :-
१. सर्वप्रथम साहित्य गोळा केले.
२ २ एम एल फक्त दूध व १ एम एल पाणी व दुधाचे मिश्रण केले.
हाताची मोठी बंद केली व उलट्या हातावर नुसते दुधाचा थेंब व पाणी दूध मिक्स केलेले एक थेंब हातावर बाजुबाजूला घेतले.
४ व हाताला थोड्यावेळ तिरका धरले.
५ मग नुसते दूध हळूहळू घसरत आले खाली.
६ व पाणी टाकून मिक्स केलेले दूध पटकन खाली घसरले.
७ यावरून दुधातील भेसळ अशी ओळखली जाते यावरून कोणते दुधात पाणी आहे हे समजले जाते.
अनुभव :- आपल्याला घरी काही मशीन केमिकल नसेल तर तरी आपल्याला दुधातील भेसळ ओळखता येते यामध्ये फरशीवर व काचेच्या प्लेटवर सुद्धा अशा प्रकारे घरी करता येते व दुधाची पिशवी री पॅकिंग कशी ओळखण्याचा पद्धत तिच्या काठी वर्ण हात फिरवून याचा जर करवतीच्या दहा ता सारखे खडबडीत असेल तर ते दूध पिशवीरी पॅकिंग नाही केलेली ती कंपनी पॅकिंग आहे व भेसळ ओळखता येते व भेसळ केलेले दूध फिकट पांढरा रंग होतो व चांगले दूध दुधासारखे पांढरे शुभ्र असते यावरून ही भेसळ ओळखणे समजली जाते.
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